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मध्यप्रदेश में भाजपा के 13 वर्षों के शासन में अब तक 15 हजार से ज्यादा किसानों ने गरीबी और कर्ज से तंग आकर मौत को गले लगा लिया है। राज्य में किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा हर रोज बढ़ता ही जा रहा है, मगर प्रदेश के मुख्यमंत्री कह रहें है कि, “हम किसानों की मदद करते हैं।”
जहां एक तरफ मुख्यमंत्री खुद को किसानों के मददगार बता रहे हैं वहीं दूसरी तरफ उनके ही राज्य से रोज किसानों के आत्महत्या करने की खबर आती है। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रदेश सरकार कहीं किसानों को मरने में तो उनकी मदद नहीं कर रही?
मध्यप्रदेश के हर जिले, हर कस्बे में किसान की मौत को कर्ज का नाम देकर उसे बंद कर दिया जाता है।
आत्महत्या पर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि किसानों और कृषि मजदूरों की आत्महत्या रुकने की बजाय बढ़ रही है। कुल मिलाकर देश में 2020 के दौरान कृषि क्षेत्र में 10,677 लोगों की आत्महत्या की जो देश में कुल आत्महत्याओं (1,53,052) का 7% है। इसमें 5,579 किसान और 5,098 खेतिहर मजदूरों की आत्महत्याएं शामिल हैं |
शिवराज सरकार को आंकड़े देख कर सोचना चाहिये कि उन्होंने प्रदेश को किसान की कब्र गृह बना दिया है ।
सबसे बड़ा प्रश्न चिन्ह ये है कि ये सिलसिला रुकेगा कब?