चंबल को डाकुओं की नगरी क्यों कहते हैं

चंबल में 100 से ज्यादा हत्या के आरोपी और 550 डाकुओं के गैंग के सरदार रहे पूर्व डाकू पंचम सिंह चंबल की घाटी का जाना माना नाम है । एक समय एसा था कि वे चंबल घाटी में अपना सिक्का जमा कर बैठे थे, तब पूरी घाटी में पंचमसिंह का खौफ था, सरकार ने एक समय उन्हें पकड़ने के लिए 2 करोड़ का इनाम भी लगाया था। पंचम सिंह ने 14 साल तक चंबल के बीहड़ों पर राज किया। कत्ल, अपहरण और डकैती के लगभग 300 से ज्यादा केस उनके खिलाफ दर्ज हुए। मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में उनका आतंक था, लेकिन गांधीवादी समाजसेवी डॉ सुब्बाराव के संपर्क में आने के बाद वे डाकू पंचम सिंह से संत पंचम भाई बन गए। अब वे ब्रह्मकुमारी आश्रम के माध्यम से लोगों को आध्यात्म पर प्रवचन दे रहे हैं। वे अब तक 500 से ज्यादा जेलों में प्रवचन दे चुके हैं। पंचम सिंह बताते हैं, “1958 में पंचायत चुनाव की रंजिश में दूसरे पक्ष के लोगों ने उनके साथ बेरहमी से मारपीट की। उनके पिता पंचम सिंह को बैलगाड़ी में अस्पताल ले गए। जब वे वापस गांव लौटे तो फिर दूसरे पक्ष के लोगों ने उन्हें और उनके पिता को पीटा। इसके बाद भी जब न्याय नहीं मिला तो उनके मन में बदला लेने की भावना पैदा हुई और वे चंबल के बीहड़ में चले गए और डकैत बन गए।