मप्र के करीब 400 पूर्व विधायकों को विधायक विश्रामगृह में तीन दिन रुकना और नाश्ता अब फ्री मिलेगा। उनके लिए 25 कमरे भी आरक्षित रहेंगे। सरकार में प्रोटोकॉल, रेलवे में एसी-फर्स्ट किराए की सुविधा और हवाई यात्रा के साथ मप्र भवन में कमरे के लिए तवज्जो मिलने से जुड़े मसलों को सदस्य सुविधा समिति देखेगी। पूर्व विधायकों के संघ की इन मांगों पर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. गिरीश गौतम ने सहमति दे दी है। विधानसभा में गुरुवार को पूर्व विधायकों के कार्यक्रम में हुए इस निर्णय पर सवाल उठने लगे हैं। सबसे पहला सवाल तो भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी लोकेंद्र पाराशर ने ही उठाया। पूर्व विधायकों की भत्ता बढ़ाने और टोल फ्री वाली मांग पर पाराशर ने ट्वीट किया है काश!, पूर्व माननीय बैठक में इन मांगों के अलावा जरूरतमंदों के लिए कोई अभूतपूर्व मांग करते तो अच्छा होता। इन सुविधाओं में वृद्धि और भाजपा के अंदर से उठे सवाल के बाद वह बहस फिर चर्चा में आ गई है कि क्या पूर्व विधायकों व सांसदों को सुविधाएं मिलनी चाहिए या नहीं? मिलनी चाहिए तो कितनी व कितने दिनों तक?
यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि दलितों व पिछड़ों के आरक्षण, किसानों को मिलने वाली सुविधाओं और राहतों पर जब तब सवाल उठा दिए जाते हैं। एक वर्ग है जिसे महसूस होता है कि उनके दिए टैक्स पर बड़े वर्ग को पोषित किया जाता है। वे लोक-कल्याणकारी राज्य की अवधारणा पर ही प्रश्न उठाते हुए तर्क देते हैं कि किसी को मुफ्त कुछ नहीं मिलना चाहिए। चाहे कोई कितना ही वंचित हो, उसे कुछ कीमत तो चुकानी ही चाहिए।