आखिर क्यों इंदौर की अलका ने सेक्स चेंज कराया ?

खुद के शरीर में जब आप खुद असहज महसूस करते हैं तो क्या करते हैं ? जब आप पैदा गलत शरीर में होते हैं तब क्या करते हैं ? ये सब प्रश्न मन-मष्तिस्क को बेकाबू जरूर करते हैं फिर ख्याल आता है क्यों न खुद की ख़ुशी के लिये आगे आऊं और सेक्स चेंज करा लू। जी हाँ आज सेक्स चेंज कराना नार्मल हो गया है।

क्या सर्जरी से महिला को पुरुष और पुरुष को महिला बनाया जा सकता है? वो कौन लोग हैं जो ये ऑपरेशन कराते हैं? उनके लिए ये इतना ज़रूरी क्यों है? प्लास्टिक सर्जन डॉ. नरेंद्र कौशिक के मुताबिक सेक्स रिअसाइन्मेन्ट सर्जरी की ज़रूरत उन्हें पड़ती है जो ट्रांसजेंडर हैं। डॉ. कौशिक भारत के उन चुनिंदा सर्जनों में से एक हैं जिन्हें सेक्स असाइन्समेंट सर्जरी में विशेषज्ञता हासिल है।

उन्होंने बताया कि कोई व्यक्ति जन्म से ही या तो ट्रांसजेंडर होता है या नहीं होता है. यह कोई ऐसी प्रवृत्ति नहीं है जो जन्म के बाद विकसित हो।

कौन हैं ट्रांसजेंडर?

ट्रांसजेंडर यानी जिनका ‘सेक्शुअल ऑर्गन’ और जेंडर अलग-अलग है। ऐसा शख़्स अपने शरीर में सहज नहीं होता है. ऐसा मुमकिन है कि लड़का बनकर जन्मा कोई शख़्स लड़की जैसा महसूस करे या लड़की के शरीर में जन्मा शख़्स लड़के जैसा महसूस करे।

दरअसल लोग ‘ग़लत’ शरीर में पैदा नहीं होते। होता सिर्फ़ इतना है कि उनका असली जेंडर जन्म के वक़्त निर्धारित जेंडर से मेल नहीं खाता।

उदाहरण के लिए परिवार और समाज बच्चे का लिंग देखकर उसका जेंडर तय कर देता है। लेकिन मुमकिन है बच्चा बड़ा होने के बाद अपने निर्धारित जेंडर में सहज महसूस न करे।

यह कोई दिमागी परेशानी, स्वभाव या जान-बूझकर की जाने वाली हरकत नहीं है, ऐसा होना बिल्कुल नॉर्मल है. ये इतना सामान्य है कि इनके क्रोमोसोम्स भी लड़के (XY) और लड़कियों (XX, YY) वाले होते हैं। इसके बावजूद ये अपने शरीर के अनुसार न तो महसूस करते हैं और न ही वैसा बर्ताव कर पाते हैं।

मेडिकल साइंस की भाषा में इस स्थिति को ‘जेंडर डिस्फ़ोरिया’ कहते हैं।

इंदौर की अलका की अस्तित्व बनने की कहानी

47 साल की उम्र में अलका ने अपना जेंडर चेंज कराया और बनी अस्तित्व। 20 वर्ष की आयु में उसने महसूस किया कि लड़कियों के पहनावे में, लड़कियों जैसे रहन-सहन के साथ वह सहज नहीं है। लेकिन तब समाज में जेंडर अवेयरनेस नहीं थी, इसलिए खुद को समझने में भी वक्त लगा। फिर जब माता-पिता को बताया तो उन्होंने साथ तो दिया पर लोकलाज का हवाला देते हुए समझा दिया। उनकी बात मानकर एक बार फिर नारीत्व के साथ जीवन बिताने की कोशिश की, लेकिन वह असहजता अब भी बनी हुई थी। पहनावा और उठना-बैठना तो पुरुषों जैसा था, मगर समाज में संबोधन स्त्री वाले ही मिले।

अलका के मुताबिक इस दोहरी जिंदगी से घुटन होती थी। किस-किस से कहता कि मैडम-दीदी कहकर न पुकारें। यह संबोधन आहत करते थे। इसलिए तय किया कि अब जीवन अपने तरीके से ही जीना है। एक बार विचार आया कि उम्र के 46 साल तो यूं ही बीत गए, पर फिर लगा कि संसार में मेरा आना कैसे होगा इस पर मेरा वश नहीं था, लेकिन जीने का तरीका और दुनिया से जाने का अंदाज मेरा अपना होगा और इसी हौसले के साथ अलका ने खुद के लिये ये कदम उठाया।

ऑपरेशन के बाद

सर्जरी के बाद मेडिकल सर्टिफ़िकेट और हलफ़नामे की मदद से सरकारी कागजातों जैसे राशन कार्ड, आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड में नाम और सेक्स बदलवाया जा सकता है। हालांकि शैक्षणिक कागजातों में इसे नहीं बदला जा सकता. यानी हाई स्कूल और इंटरमीडिएट के सर्टिफ़िकेट पर वही नाम और सेक्स लिखा रहेगा जो किसी को जन्म से मिला है।

डॉ. कौशिक कहते हैं कि अगर जेंडर डिस्फ़ोरिया के बारे में सही जानकारी हो तो न जाने कितने ही लोग चैन और ख़ुशी की ज़िंदगी जी सकेंगे।