ग्वालियर : स्टेट बार काउन्सिल के आह्वान पर प्रदेश के वकील आज से तीन दिनों के लिए हड़ताल पर चले गए हैं, प्रदेश के 92000 वकीलों के हड़ताल पर चले जाने यानि न्यायालयीन कार्य से विरत रहने के चलते आज प्रदेश के न्यायालयों में कार्य ठप है, उधर प्रकरणों की सुनवाई नहीं होने से पक्षकार परेशान हो रहे हैं।
कोर्ट पहुंचे वकील लेकिन नहीं किया कोई काम
ग्वालियर के न्यायालयों में आज वकीलों ने काम नहीं किया, वकील कोर्ट तो पहुंचे लेकिन उन्होंने विरोध प्रदर्शन किया, ग्वालियर में जिला एवं सत्र न्यायालय परिसर में जिले के वकील इकट्टा हुए और मीडिया के सामने अपनी बात रखी। राज्य अधिवक्ता परिषद् यानि स्टेट बार काउन्सिल के अध्यक्ष एडवोकेट प्रेम सिंह भदौरिया ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि हम सब माननीय मुख्य न्यायाधिपति द्वारा दिए गए आदेश का विरोध कर रहे हैं।
3 महीने में 25 केसों का निराकरण करना व्यवहारिक नहीं
उन्होंने कहा कि मुख्य न्यायाधिपति ने अपने उच्च न्यायालयों में केस की पेंडेंसी पर कभी ध्यान नहीं दिया लेकिन अधीनस्थ न्यायालयों के लिए तीन महीने में निराकरण का आदेश दे दिया, उन्होंने आरोप लगाया कि जिला न्यायालयों पर दबाव बनाया जा रहा है। व्यवहारिक कठिनाई की बात करते हुए उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति अपने प्रकरण में एक अच्छा वकील चाहता है ये उसका अधिकार भी है लेकिन मुख्य न्यायाधिपति ने आदेश दिया है कि आपको 3 महीने में 25 केसों का निराकरण करना है, जो व्यवहारिक नहीं है।
स्टेट बार काउन्सिल अध्यक्ष बोले – न्याय की भ्रूण हत्या हो रही है
एडवोकेट प्रेम सिंह भदौरिया ने कहा कि इस आदेश के बाद सही मायने में न्याय की भ्रूण हत्या हो रही है उस न्याय को प्राप्त करने का जिसे अधिकार है उसे पूरा करने से पहले ही उसकी हत्या हो रही है, इसलिए प्रदेश के सभी डिस्ट्रिक्ट बार एसोसियेशन , स्टेट बार काउन्सिल ने चीफ जस्टिस से आग्रह किया था कि आदेश व्यवहारिक नहीं है इससे न्यायाधीशगण, अभिभाषकगण सभी शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान हैं इसलिए इसे वापस लें।
23,24,25 को रहेगी हड़ताल, 26 को आगे की रणनीति होगी तय
अध्यक्ष प्रेम सिंह भदौरिया ने कहा कि हमने कई पत्र चीफ जस्टिस को भेजे हैं उन्होंने अभी तक कोई चर्चा नहीं की है इसलिए हमने 23,24 और 25 मार्च को कार्य से विरत रहने का फैसला लिया है 26 को रविवार है इस बीच यदि चीफ जस्टिस महोदय हम लोगों से कोई बात करते है या फैसला रद्द करते है या कुछ महीनों के लिए स्थगित कर देते हैं तो उससे पक्षकारों को सही मायने में न्याय मिलेगा और यदि ऐसा नहीं होता है तो आगे की रणनीति बैठक कर तय की जाएगी।