मध्य प्रदेश की राजनीति में राघोगढ़ राजघराने का प्रभाव शुरू से ही रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के गृह नगर राघोगढ़ में उनका ऐतिहासिक किला भी है जहां उनका परिवार निवास करता है. किले के रखरखाव से लेकर दिग्विजय की राजनीतिक एवं धार्मिक विरासत को अब उनके बेटे जयवर्धन सिंह ही संभालते हैं.
राजघराने का 300 साल पुराना है इतिहास
पिता बलभद्र सिंह के बाद दिग्विजय सिंह और अब उनके बेटे जयवर्धन सिंह राजनितिक विरासत को सहेजे हुए हैं. जयवर्धन सिंह के साथ उनकी पत्नी सृजाम्या सिंह कंधे से कंधे मिलाकर चलती हैं. जयवर्धन सिंह को जनता ने दूसरी बार चुनकर एमपी की विधानसभा में पहुंचाया है. जनता के बीच में भावनात्मक पकड़ के बलबूते जयवर्धन हमेशा से ही अच्छे खासे मतों से चुनाव जीतते आए हैं.
जयवर्धन सिंह की पत्नी सृजाम्या सिंह भी राघोगढ़ की जनता के साथ बहू का रिश्ता निभाने में कोई कसर नही छोड़ती. सृजाम्या अपने 2 साल के बेटे सहस्त्रजय सिंह के साथ राघौगढ़वासियों से मुलाकात भी करतीं हैं. वहीं जयवर्धन भी अपनी पत्नी और बेटे के साथ जनता के बीच में पहुंचकर परिवारवाद का रिश्ता आगे बढ़ाते रहते हैं.
विरासत को आगे बढ़ाने में जुटे
राजशाही परिवार के अनछुए पहलुओं पर जब न्यूज़ 18 ने जयवर्धन सिंह से बात की तो उन्होंने राघोगढ़ राजघराने के बारे में बारीकी से बताया. जयवर्धन सिंह ने बताया कि पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान दिग्विजय सिंह ने उन्हें जनता को सौंप दिया था. जिसके बाद दिग्विजय कभी भी उनके बेटे जयवर्धन के लिए प्रचार करने राघोगढ़ नही पहुंचे. जयवर्धन अपने बलबूते ही राजनितिक विरासत को आगे बढ़ाने में जुटे हुए हैं. दिग्विजय सिंह की केंद्रीय राजनीति में व्यस्तता के कारण जयवर्धन अपनी पत्नी और बेटे के साथ विरासत को आगे बढ़ाने में जुटे हैं.
राजनैतिक विरासत के साथ साथ धार्मिक अनुष्ठानों के प्रति भी जयवर्धन सिंह का झुकाव हमेशा बना रहता है. जयवर्धन जब भी राघोगढ़ में मौजूद होते हैं तो किले में मौजूद 9 मंदिरों में पूजा पाठ करने के बाद ही क्षेत्रवासियों से मुलाकात करने निकलते हैं.