मध्य प्रदेश में निकाय चुनावों को लेकर प्रचार प्रसार जोरों पर है। पंचायत चुनाव के शुरुआती रुझानों में सफलता मिलने के बाद कांग्रेस ने नगर निकायों के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। पीसीसी चीफ कमलनाथ और पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह की टीम माइक्रो लेवल पर मैनेजमेंट में लगी है। नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस डैमेज कंट्रोल में सफल हो गई।
कांग्रेस ने निकाय चुनावों में टिकट वितरण को लेकर बागी हुए करीब 34 लोगों के खिलाफ कार्रवाई की है।जबकि बीजेपी को 250 से ज्यादा बागी कार्यकर्ताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में महज 34 कार्यकर्ता ही टिकट वितरण से नाराज थे। बल्की शुरुआत में कांग्रेस के भीतर बीजेपी से भी ज्यादा बगावती सुर देखने को मिल रहे थे। लेकिन उन बागियों को मनाने और वापस पार्टी के लिए उन्हें एकजुट करने में कांग्रेस नेतृत्व सफल रही।
दिलचस्प बात ये है कि निकाय चुनाव के लिए कांग्रेस की को कोर टीम है उसकी औसत आयु 60 वर्ष के करीब है। यानी मोर्चा युवाओं ने नहीं बल्कि वरिष्ठों ने संभाला है। चुनाव संचालन का पुराना अनुभव इस टीम की खासियत है। यही वजह है कि हफ्तेभर में बागियों को मनाने से लेकर उन्हें पार्टी के पक्ष में प्रचार करने के लिए तैयार कर लिया गया। पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का इसमें बेहद अहम रोल माना जा रहा है।
जानकारी के मुताबिक सिंह एक एक वार्ड के नाराज कार्यकर्ताओं से न सिर्फ कॉल पर बात कर रहे हैं, बल्की उन्हें मनाने उनके घरों तक जा रहे हैं। राजधानी भोपाल में ऐसा ही देखने को मिल रहा है। उधर पीसीसी चीफ कमलनाथ ने अपने घर पर मिनी कंट्रोल रूम स्थापित कर लिया है। यहां से वे देर रात तक सभी नगर निकायों की माइक्रो लेवल पर मॉनिटरिंग करते हैं। साथ ही वे धुआंधार चुनाव प्रचार भी कर रहे हैं।
इसके अलावा अशोक सिंह, सुरेश पचौरी, डाॅ. गोविंद सिंह, वरिष्ठ विधायक सज्जन सिंह वर्मा, एनपी प्रजापति जो कोर ग्रुप के सदस्य हैं वे भी जोर शोर से लगे हुए हैं। वहीं भाजपा की बात की जाए तो अनुभवी नेताओं ने यहां चुनाव प्रचार से दूरी बना लिया है। इंदौर में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने मेयर प्रत्याशी पुष्यमित्र भार्गव को आशीर्वाद तो दिया है, लेकिन उम्र के चलते चुनाव प्रचार में वे पूरी तरह सक्रिय नहीं हैं। वरिष्ठ नेता सत्यनारायण सत्तन भी चुनावी रैली और प्रचार से लगभग दूरी बनाए हुए हैं। बाबू सिंह रघुवंशी भी कम ही सक्रिय हैं।
कमोबेश ऐसी ही स्थिति वरिष्ठ नेता विक्रम वर्मा के साथ है। वे धार में नगर पालिका चुनाव की बैठकों में पहुंचे, लेकिन प्रत्याशियों के प्रचार में नहीं गए। भोपाल में पूर्व राज्यसभा सांसद रहे वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा भी चुनाव से दूर हैं। वे किसी भी चुनावी रैली में नजर नहीं आ रहे हैं। ग्वालियर में माया सिंह कुछ जगह पर देखी गई हैं। हालांकि वह चुनाव प्रचार में सक्रिय नहीं हैं। इधर, जबलपुर की बात करें ताे विधायक अजय विश्नोई पूरी तरह से प्रचार से दूर हैं। इतना ही नहीं अब तो स्वयं प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कोरोना पॉजिटिव होने का दावा कर चुनाव प्रचार से दूरी बना लिया है।
भोपाल में 24 बागियों को पार्टी से निष्कासित किया गया है। इनमें निर्दलीय चुनाव लड़ रहे विलास घाडगे शामिल है। वे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी कृष्णा घाडगे के चाचा हैं। बताया जा रहा है कि घाडगे को वार्ड 34 से टिकट दिलाने के लिए सिंधिया ने पैरवी की थी। वैसे घाडगे बीजेपी में काफी समय से है। पूर्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता के भी समर्थक रहे हैं।
बीजेपी के लिए मेयर पद के तीन बागी सबसे ज्यादा परेशानी का सबब बन गए है। कटनी में बागी होकर चुनाव लड़ रही प्रीति संजीव सूरी को 6 साल के लिए निष्कासित किया गया है। यहां भाजपा ने ज्योति दीक्षित को टिकट दिया है। रतलाम में पार्टी का सिरदर्द बन चुके बागी अरूण राव को शोकॉज नोटिस दिया है। यहां प्रहलाद पटेल उम्मीदवार हैं। ये टिकट विधायक चैतन्य कश्यप की पसंद का है। छिंदवाड़ा में पार्टी ने असिस्टेंट कमिश्नर रहे अनंत धुर्वे को प्रत्याशी बनाया है, जबकि जितेंद्र शाह तगड़े दावेदार थे। प्रमुख नेताओं की मनुहार के बाद शाह पीछे हट गए है। हालांकि शाह चुनाव प्रचार में खुलकर साथ नहीं दे रहे है।