कोलकाता: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के एक बयान ने सबको चौंका दिया। उन्होंने कहा कि 2024 में बीजेपी को सत्ता से बेदखल करना उनकी आखिरी लड़ाई होगी। टीएमसी की मुखिया ने एक रैली में कहा कि बीजेपी को 2024 के लोकसभा चुनावों में हराना है। इस दौरान उन्होंने बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने का वादा भी किया। उन्होंने आगे कहा कि पश्चिम बंगाल को बचाना हमारी पहली लड़ाई होगी। अगर आप हमें डराने की कोशिश करेंगे तो हम आपको जवाब देंगे। इस दौरान उन्होंने 1984 में 400 से अधिक सीट जीतने के बावजूद 1989 में पूर्व पीएम राजीव गांधी के चुनाव हारने का भी जिक्र किया और कहा कि हर किसी को हार का समना करना पड़ता है। ममता के इस बयान पर बीजेपी का कहना है कि वे 2024 के बाद सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लेंगी। लेकिन अलग-थलग पड़े महागठबंधन के दम पर वे बीजेपी को रोक पाएंगी? क्योंकि कांग्रेस से उनके संबंध हाल के दिनों में बिगड़े ही हैं। तो क्या इस लड़ाई में भाजपा से गठबंधन तोड़ने वाले बिहार के सीएम नीतीश कुमार ममता के सेनापति बनेंगे?
नीतीश कुमार सेनापति या खतरा?
जब बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रही थी, तब तक 2024 लोकसभा चुनाव के लिए महागठबंधन की ओर से ममता बनर्जी, शरद पवार, केसीआर और राहुल गांधी जैसे नामों पर चर्चा हो रही थी। लेकिन जैसे ही नीतीश ने कुमार ने गठबंधन तोड़ा, अब उन्हें अगले लोकसभा चुनाव के लिए पीएम कैंडिडेट बताया जा रहा। टीएमसी गाहे-बगाहे ममता को पीएम उम्मीदवार बताती रही है। ऐसे में एक तरह से देखें तो नीतीश कुमार उनके लिए इस रास्ते में अवरोधक ही है। ऐसे में अब सवाल यह है कि वे फिर ममता के लिए सेनापति कैसे बन सकते हैं? इसे टीएमसी के पिछले कुछ बयानों पर नजर दौड़ानी पड़ेगी।
इस बारे में हमने पश्चिम बंगाल की राजनीति की समझ रखने वाले वरिष्ठ राजनीति पत्रकार जिवानंद बसु से बात की। वे कहते हैं, ‘ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की राजनीति में फंसी हैं। पार्थ चटर्जी और शिक्षक भर्ती घोटाला मामले को बीजेपी इतनी आसानी से नहीं जाने देगी। ऐसे में उन्हें एक ऐसे चेहरे की तलाश है जो पीएम उम्मीदवार की सही कैंडिडेट हो। और नीतीश कुमार सही प्रत्याशी हो सकते हैं। उन्होंने जिस चालाकी से बिहार में महाराष्ट्र की कहानी नहीं होने देगी, इससे उनकी राजनीति परख की साख और मजबूत हुई है।’
‘एक बात और कि अगर 2014 से पहले देखें तो नीतीश कुमार पीएम उम्मीदवार की रेस में सबसे आगे थे। लेकिन उन्हें किनारे कर दिया गया। ऐसे में कमजोर होते गठबंधन में नीतीश कुमार और ममता बनर्जी को एक दूसरे से काफी उम्मीदे हैं।’
वे आगे कहते हैं कि ममता नीतीश सेनापति इसलिए भी बना सकती हैं कि भले ही राज्य में उनकी सरकार है। लेकिन सच तो यह है कि बीजेपी वहां तेजी से पैर पसार रही है। तेलंगाना में केसीआर के सामने भी ही चुनौती है। ऐसे में ममता को मजबूत कंधे की जरूरत तो है ही। इसे इन आंकड़ों से भी समझा जा सकता है।पश्चिम बंगाल में 2014 में ममता की पार्टी टीएमसी की 34 सीटें थीं और बीजेपी की 2। लेकिन 2019 के चुनाव में बीजेपी को यहां 900 फीसदी का फायदा हुआ। ममता की 12 सीटें कम हो गईं। स्ट्राइक रेट की बात करें तो 2014 में टीएमसी का स्ट्राइक रेट 81 फीसदी था और बीजेपी का 5 परसेंट। लेकिन 2019 में बीजेपी का स्ट्राइक रेट 43 परसेंट हो गया और TMC का 52 प्रतिशत।
नीतीश ने कहा- पद की लालसा नहीं
बिहार में सत्ता परिवर्तन के बाद नीतीश कुमार ने 2024 में पीएम पद के उम्मीदवार को लेकर कहा था कि उनकी प्रधानमंत्री बनने की कोई महत्वाकांक्षा नहीं है लेकिन वह केंद्र में सत्तारूढ़ राजग के खिलाफ विपक्षी एकता स्थापित करने में सकारात्मक भूमिका निभाने को लेकर आशान्वित हैं। नीतीश कुमार ने कहा कि वे सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते और ईडी से नहीं डरते हैं। बीजेपी पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि जिन लोगों को दुरुपयोग की आदत पड़ गयी है, उन्हें जनता के गुस्से का सामना करना पड़ेगा। नीतीश के बयान और ममता के बयान को देखें तो दोनों नेता एक ही लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं।
टीएमसी सांसद और कभी बीजेपी में रहे शत्रुघ्न सिन्हा का भी बयान गौर करने लायक है। बिहार में सत्ता परिवर्तन के बाद उन्होंने कहा था कि देश से भाजपा राज खत्म करने के लिए ममता बनर्जी और नीतीश कुमार साथ आए हैं। विपक्ष अब पहले से अधिक मजबूत हुआ है। सारे विपक्ष मिलकर अब भाजपा राज खत्म करेंगे।