मिशन राजस्थान पर शाह : विपक्ष अभी टीम जोड़ ही रहा और बीजेपी ने 2024 के लिए फील्डिंग सजा दी…

नई दिल्ली : विपक्ष अभी टीम ही जोड़ रहा। बीजेपी के खिलाफ एकजुटता की कवायद ही कर रहा। पीएम मोदी के खिलाफ एकजुट विपक्ष का चेहरा कौन होगा? राहुल गांधी, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, केसीआर, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव या कोई अन्य? विपक्षी दल अभी इसी बात को लेकर परेशान हैं। केसीआर राष्ट्रीय पार्टी लॉन्च करने का प्लान बना रहे ताकि दावेदारी को दम मिले। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस अभी संगठन चुनाव तक नहीं करा पाई। लेकिन बीजेपी ने अभी से 2024 के लिए फील्डिंग सजा दी है। टफ सीटों के लिए अलग प्लान। केंद्रीय मंत्रियों को ताकीद के साथ अहम जिम्मेदारी। ताकतवर बीजेपी संसदीय बोर्ड का पुनर्गठन। आरएसएस की सक्रियता। जेपी नड्डा के साथ-साथ अमित शाह के राज्यों के ताबड़तोड़ दौरे। और अब राज्यों के प्रभारियों में अहम बदलाव। रणनीति के मोर्चे पर बीजेपी विपक्ष से बहुत आगे दिख रही।

राजस्थान में शाह, छत्तीसगढ़ में आरएसएस की बैठक
इसी हफ्ते केंद्र के सीनियर मिनिस्टर्स की क्लास लेने के बाद गृह मंत्री अमित शाह शनिवार को राजस्थान के दौरे पर हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गढ़ जोधपुर में। कार्यक्रम है ओबीसी मोर्चा का। दूसरी तरफ, शनिवार को ही छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 3 दिवसीय बैठक शुरू हुई है। संघ प्रमुख मोहन भागवत समेत दिग्गजों की जुटान है। पहले दिन बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी शामिल हुए। बीजेपी अपनी पूरी ताकत झोंक ही रही है। पर्दे के पीछे आरएसएस भी मोर्चे पर लगा हुआ है।

बड़े नेताओं की दी गई राज्यों की जिम्मेदारी
अभी पिछले महीने ही बीजेपी ने जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन को साधने के लिए अपने ताकतवर संसदीय बोर्ड में कई अहम बदलाव किए। बीजेपी में अहम फैसले बोर्ड ही लेता है। अब एक महीने के भीतर पार्टी ने फिर से संगठन को मथा है। इस बार राज्यों के प्रभारियों में बड़े पैमाने पर बदलाव किया है। जिन नेताओं को राज्यों की जिम्मेदारी दी गई है उनमें पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री तक हैं। मकसद है वरिष्ठ नेताओं के अनुभव का ज्यादा से ज्यादा फायदा लेना।

गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को पंजाब और चंडीगढ़ का प्रभारी बनाया गया है। इसी तरह त्रिपुरा के पूर्व सीएम बिप्लब कुमार देब को हरियाणा की जिम्मेदारी दी गई है। दोनों ही राज्यों में अगले कुछ महीनों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में इन दोनों राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्रियों को अहम जिम्मेदारी देने से विधानसभा चुनाव के दौरान के फायदा मिलेगा। पूर्व केंद्रीय मंत्रियों प्रकाश जावड़ेकर को केरल तो महेश शर्मा को त्रिपुरा का प्रभारी बनाया गया है। बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य ओम माथुर छत्तीसगढ़ और यूपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद लक्ष्मीकांत बाजपेयी झारखंड में पार्टी की तैयारियों को अमलीजामा पहनाएंगे।

महाराष्ट्र के नेता विनोद तावड़े को बिहार की जिम्मेदारी दी गई है जहां नीतीश कुमार ने फिर पाला बदलने के बाद पार्टी सूबे की सत्ता से बाहर हो चुकी है। बिहार के पूर्व मंत्री मंगल पाण्डेय पश्चिम बंगाल को देखेंगे। बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा को भी संगठन में अहम जिम्मेदारी दी गई है। उन्हें पूर्वोत्तर के 8 राज्यों का संयोजक बनाया गया है जबकि राष्ट्रीय सचिव रितुराज सिन्हा को संयुक्त संयोजक की जिम्मेदारी दी गई है। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह को राजस्थान और पी मुरलीधर राव को मध्य प्रदेश का प्रभार बरकरार रखा गया है।

मंत्रियों पर 144 टफ सीटों की जिम्मेदारी
कुछ दिन पहले ही गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी चीफ जेपी नड्डा ने बड़े केंद्रीय मंत्रियों की क्लास ली थी। 25 से ज्यादा केंद्रीय मंत्रियों को 144 ऐसी कठिन सीटों की जिम्मेदारी दी गई है जहां पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी मुख्य मुकाबले में थी। इनमें से ज्यादातर सीटों पर पार्टी दूसरे या तीसरे नंबर पर थी। कुछ जीती हुई सीटें भी लिस्ट में शामिल हैं। इनमें से हर मंत्री को मई में ही 3-4 सीटों की जिम्मेदारी दी गई थी। इन्हें उन संसदीय क्षेत्रों में रहकर वहां के मुद्दों और वोटरों को मिजाज समझना है और उसी के हिसाब से रणनीति तय करना है। अगले महीने से मंत्रियों के प्रवास का दूसरा चरण भी शुरू होने वाला है।

पिछले महीने संसदीय बोर्ड में बड़े बदलाव
अभी महीनेभर भी नहीं हुए जब अगस्त में बीजेपी ने संसदीय बोर्ड में बड़े बदलाव किए थे। 2014 के बाद पहली बार संसदीय बोर्ड में बदलाव किया गया। अरुण जेटली, सुषमा स्वराज और अनंत कुमार की मौत और वेंकैया नायडू, थावरचंद गहलोत जैसे नेताओं के सक्रिय राजनीति से दूरी के बाद संसदीय बोर्ड में सदस्यों के कई पद खाली थे। नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान जैसे दिग्गजों की छुट्टी करके उनकी जगह पर अलग-अलग क्षेत्रों और सामाजिक पृष्ठभूमि से आने वाले कई नए चेहरों को जगह दी गई। असम के पूर्व सीएम सर्बानंद सोनोवाल के जरिए नॉर्थ ईस्ट के साथ-साथ आदिवासी समुदाय को साधने की कोशिश की गई। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को पार्लियामेंटरी बोर्ड में लाया गया जिन्होंने बसवराज बोमई के लिए सीएम की कुर्सी छोड़ी थी। कर्नाटक में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं और येदियुरप्पा के जरिए बीजेपी प्रभावशाली लिंगायत समुदाय को साध रही है।

पंजाब को साधने के लिए इकबाल सिंह लालपुरा के रूप में पहली बार किसी सिख को बीजेपी संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया। ओबीसी मोर्चा के प्रमुख और तेलंगाना के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के जरिए पिछड़ी जातियों को साधने के साथ-साथ तेलंगाना को साधने की कोशिश की गई। एक और ओबीसी नेता सुधा यादव को भी संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया। वह हरियाणा से आती हैं और करगिल युद्ध के बलिदानी की पत्नी हैं। मध्य प्रदेश के सत्यनारायण जटिया के जरिए दलितों को साधने की कोशिश की है। महाराष्ट्र में उपमुख्यमंत्री पद के लिए तैयार होने वाले पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, भूपेंद्र यादव, ओम माथुर, बीजेपी महिला मोर्चा की अध्यक्ष वी. श्रीनिवासन के जरिए भी क्षेत्रीय और जातिगत संतुलन साधने की कोशिश की गई।

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