नई दिल्ली : कांग्रेस में एक बार फिर तनाव जगह लेता दिख रहा है। इस बार वजह गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले अशोक गहलोत के नेतृत्व वाला राजस्थान बना है। कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव की तैयारियों के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर छिड़े घमासान की आंच गांधी परिवार तक भी पहुंच गई है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस में दो नेताओं के बीच तल्खी की खबर हो और कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी में यह आम बात भी है, लेकिन हाल के कुछ सालों में सियासी संकट से जूझने में कांग्रेस का प्रदर्शन असफल रहा है।
अरुणाचल प्रदेश: बात अरुणाचल प्रदेश की है। राज्य में तत्कालीन मुख्यमंत्री नाबाम तुकी और उनके भतीजे नाबाम रेबिया के खिलाफ सुर उठ रहे थे। थोड़ी चिंगारी बड़ी आग में तब्दील हुई। हालांकि, पार्टी ने तुकी की जगह कालिको पुल को दी, लेकिन इसके परिणाम भी बेहतर नहीं रहे और पार्टी टूट गए। तुकी को छोड़कर विधायक दल के सभी नेताओं ने पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल का दाम थामा। बाद में पेमा खांडू और बड़ी संख्या में पीपीए विधायक भारतीय जनता पार्टी का हिस्सा बन गए।
गोवा: गोवा विधानसभा चुनाव में 17 सीटों पर जीत के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी कांग्रेस को सरकार बनाने में देरी की कीमत सत्ता गंवाकर चुकानी पड़ी। उस दौरान मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पार्टी प्रभारी थे। बाद में पूर्व मुख्यमंत्री लुइजिन्हो फलेरियों की तरफ से दावा किया गया कि सरकार के लिए दावा पेश करने के लिए सिंह ने राज्यपाल को पत्र नहीं देने दिया। नतीजा हुआ कि 2019 में कांग्रेस विधायक दल में फूट हुई।
मध्य प्रदेश: पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य में जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस में कमलनाथ बनाम दिग्विजय सिंह और कमलनाथ बनाम ज्योतिरादित्य सिंधिया से काफी नुकसान हुआ। नतीज यह हुआ कि सिंधिया ने भाजपा के साथ जाने का फैसला किया और राज्य में सरकार गिर गई। उस दौरान भी देखा गया था कि कांग्रेस की तरफ से कोई निर्णायक फैसले नहीं लिए गए और सियासी घटनाक्रम कांग्रेस के सरकार गंवाने के साथ जल्दी खत्म हो गया।
पंजाब: बीते साल ही पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच तनातनी के चलते बड़ा सियासी भूचाल आ गया था। विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही पार्टी ने नेतृत्व में बदलाव कर दलित कार्ड खेला और चरणजीत सिंह चन्नी को प्रदेश की कमान दे दी। इसके बाद भी पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ और पंजाब में आम आदमी पार्टी के हाथों सरकार गंवा दी। उस दौरान प्रदेश प्रभारी रहे हरीश रावत को चहलकदमी करते देखा गया था, लेकिन कांग्रेस को नुकसान से बचाया नहीं जा सका।
मेघालय: पूर्वोत्तर के राज्य में पार्टी को बीते साल ही एक झटका लगा था। तब मुकुल सांगमा के नेतृत्व में 17 में से 12 कांग्रेस विधायकों ने तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया था। खबर है कि विंसेंट एच पाला को अगस्त 2021 में प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद से ही इकाई में तनाव था। हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से सांगमा को शांत रखने की कोशिश हुई, लेकिन पार्टी में फूट नहीं रोकी जा सकी।
क्या संकट से उबरना भूल गई है कांग्रेस?
कांग्रेस एक के बाद एक राज्य में अपनी पकड़ खोती जा रही है। कहा जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व के गलत हस्तक्षेप या इनकी कमी ने ही बार-बार संकट तैयार किया है। उदाहरण के तौर पर राहुल गांधी के दखल को रखा जा सकता है, जहां उन्होंने गहलोत को एक ही पद संभालने के संकेत दे दिए। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, एक कांग्रेस नेता इसे राहुल की अध्याधेश फाड़ने की घटना से जोड़ते हैं।
वह कहते हैं, ‘तब उन्होंने प्रधानमंत्री के अधिकारों को टुकड़े-टुकड़े कर दिया था। और अब उन्होंने मुख्यमंत्री और संभावित रूप से बनने वाले अगले अध्यक्ष के अधिकार को कमजोर किया है। यह हैरानी की बात नहीं है कि विधायकों का समर्थन वाले गहलोत अपना दम दिखा रहे हैं। उनकी परेशानी यह है कि पायलट की तरह ही वह भी केवल राजस्थान पर भी ध्यान लगा रहे हैं।’