मध्य प्रदेश बीजेपी की राजनीति में उमा भारती के पत्थर कांड की गूंज अब भी सुनाई दे रही है। शराबबंदी की मांग कर उमा भारती ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है क्योंकि नई आबकारी नीति शराबबंदी नहीं शराब के अधिक विक्रय की व्यवस्था कर रही है। फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि उमा भारती बनाम शिवराज सिंह चौहान की लड़ाई का मोर्चा बदल गया। गेंद केंद्रीय नेतृत्व के पाले में कैसे चली गई और लड़ाई उमा भारती बनाम सांसद प्रज्ञा ठाकुर कैसे हो गई?
उमा भारती सक्रिय राजनीति में वापसी करना चाहती हैं और शराबबंदी जैसी मुहिम उनकी इस वापसी का रास्ता है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात और शराबबंदी के लिए जन जागरूकता में सरकार की भागीदारी के आश्वासन के बाद भी अगले ही दिन उमा भारती ने पत्थर उठा लिया। शराब दुकान पर बोतल पर पत्थर मारने के बाद सरकार या संगठन ने उमा भारती पर कोई एक्शन भी नहीं लिया। बीजेपी की प्रदेश इकाई ने भी मान लिया कि वे लोकसभा चुनाव ही लड़ेंगी। इसलिए उमा की संभावित सीट और पत्थरकांड पर कार्रवाई जैसे मसलों पर निर्णय का जिम्मा केंद्रीय संगठन पर डालते हुए प्रदेश इकाई ने प्रतिक्रिया से पल्ला झाड़ लिया।
इस राजनीतिक संघर्ष को उमा भारती बनाम शिवराज सिंह चौहान के बदले उमा भारती बनाम सांसद प्रज्ञा ठाकुर बनाने की कोशिशें हुईं। खबरें आम हुई कि उमा भारती का निशाना शिवराज सरकार नहीं है। उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के निशाने पर भोपाल सीट और यहां से सांसद प्रज्ञा ठाकुर है। इसे अपने विरोधियों की दिशा मोड़ देने के शिवराज खेमे की एक और सफलता निरूपित किया जा रहा है।