मध्य प्रदेश कटनी.जिले के रीठी तहसील का बांधा इमलाज स्थित राधा-कृष्ण मंदिर को लोग लघु वृंदावन कहते हैं। खास बात ये है कि मंदिर में लगे हर एक पत्थर की नक्काशी एक मुस्लिम कारीगर बादल खान ने की थी। 85 वर्ष पुराने मंदिर की नींव से लेकर गुम्बद तक के निर्माण में मात्र 15 हजार रुपए और 11 साल तक मालगुजारी में मिलने वाले अनाज का खर्चा आया था। गांव के बुजुर्ग ये भी कहते हैं कि जैसे ही मंदिर का काम पूरा हुआ और राधा-कृष्ण प्रतिमाओं का प्राण-प्रतिष्ठा हुई, यहां बारिश शुरू हो गई थी। बारिश भी पूरे सात दिन तक होती रही। इसके बाद लोग इस स्थान को लघु वृंदावन के नाम से पुकारने लगे।
गांव के बुजुर्ग जो किस्से यहां अपने लोगों को बताकर गए हैं। उसके अनुसार मंदिर में राधा-कृष्ण की प्रतिष्ठा के दौरान जब बारिश हो रही थी, उस समय ऐसा लग रहा था कि कहीं से बांसुरी की आवाज आ रही है। बांसुरी सुनाई देने का क्रम लगातार तीन दिन तक चला था। गांव के मालगुजार पं. गोरेलाल पाठक ने मंदिर की आधारशिला रखी थी लेकिन अल्प आयु में ही उनकी मृत्यु हो गई। जिसके बाद उनकी पत्नी भगौता देवी और पूना देवी ने उनके संकल्प को आगे बढ़ाने का काम किया।
बादल खान ने की नक्काशी
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि मंदिर के निर्माण में लगाए गए पत्थरों की नक्काशी और उन्हें आकर्षक रूप देने का काम बिलहरी के कारीगर बादल खान ने किया था। उनके सहयोग के लिए बिलहरी के सरजू बर्मन और भिम्मे नाम के कारीगर भी यहां आए थे।
काम खत्म होते ही भैंसों की हो गई थी मौत
ग्रामीण बताते हैं कि मंदिर में लगा पूरा पत्थर सैदा गांव से आया था और एक ही बैलगाड़ी से उनको ढोया गया। मंदिर निर्माण कार्य पूरा होते ही बैलगाड़ी में जोते जाने वाले भैंसे ने मंदिर की सीढिय़ों में ही दम तोड़ दिया था।
मंदिर के निर्माण में 15 हजार रुपए और उसके साथ मालगुजार को गांव से मालगुजारी के रूप में मिलने वाला 11 साल का अनाज लगा था
भगवान कृष्ण को मानती थीं बेटा
मंदिर समिति महेश पाठक ने बताया कि मालगुजार की पत्नियां भगवान श्रीकृष्ण को पुत्र व राधारानी को पुत्रवधु मानती थीं। जिसके चलते वर्ष 1915 में मंदिर का निर्माण प्रारंभ कराया गया, जो 9 वर्ष बाद 1924 में पूर्ण हुआ। दो वर्ष 1926 में मंदिर में प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा कराई गई। पाठक ने बताया कि उस दौरान मंदिर के निर्माण में 15 हजार रुपए और उसके साथ मालगुजार को गांव से मालगुजारी के रूप में मिलने वाला 11 साल का अनाज लगा था। बुजुर्गों ने बताया कि स्थापना के दो वर्ष बाद 1928 के भादों माह में सात दिन तक लगातार बारिश हुई थी और उस दौरान लोगों को तीन दिन व तीन रात बांसुरी की धुन सुनाई दी थी।