विपक्ष को साथ लाना, रिमोट कंट्रोल का टैग न लगने देना; कांग्रेस के बॉस खड़गे की राह में कांटे ही कांटे…

नई दिल्ली : 24 सालों के बाद कांग्रेस के गैर-गांधी अध्यक्ष चुने गए वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए आने वाला समय काफी मुश्किलों भरा रह सकता है। दरअसल, 2024 लोकसभा चुनाव से पहले खड़गे को कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। गुजरात और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के लिए ज्यादा संभावनाएं दिखाई नहीं दे रही हैं तो वहीं, राजस्थान और कर्नाटक में पार्टी अंदरूनी कलाह से जूझ रही है। इसके अलावा, 2024 चुनाव के लिए विपक्ष को एक साथ करना भी खड़गे के लिए किसी चुनौती भरा ही रहने वाला है।

हालांकि, कई चीजें हैं जो खड़गे के पक्ष में भी हैं। वे पार्टी में एक ऐसे नेता के तौर पर पहचाने जाते हैं जो सबको एक साथ लेकर चलना पसंद करते हैं। 26 अक्टूबर को आधिकारिक तौर पर खड़गे की कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नियुक्ति होगी। पार्टी के शीर्ष पद के लिए खड़गे को तब चुना गया है, जब पार्टी सिर्फ दो राज्यों- छत्तीसगढ़ और राजस्थान में है। हिमाचल और गुजरात में पार्टी बीजेपी की तुलना में काफी पीछे दिखाई दे रही है। दोनों ही राज्यों के होने वाले चुनाव खड़गे के लिए पहली चुनौती होंगे। 

इसके बाद 2023 में, कांग्रेस अध्यक्ष को अपने गृह राज्य कर्नाटक सहित नौ विधानसभा चुनावों में पार्टी का नेतृत्व करने के कठिन काम का सामना करना पड़ेगा। खड़गे का चुनाव ऐसे समय में हुआ है जब पार्टी आंतरिक लड़ाइयों के दौर से गुजर रही है और एक के बाद एक चुनावी हार मिल रही है। इतना ही नहीं, खड़गे को गांधी परिवार द्वारा रिमोट से नियंत्रित होने के बीजेपी के आरोपों का भी विरोध करना होगा और उसे गलत साबित करना होगा।

युवा और बुजुर्ग नेताओं को साथ लेकर चलना होगा
खड़गे को पार्टी में युवाओं और बुजुर्ग नेताओं के बीच सामांजस्य बनाकर चलना होगा। राजनीतिक टिप्पणीकार रशीद किदवई कहते हैं कि खड़गे के सामने कई चुनौतियां हैं क्योंकि उन्हें टीम राहुल गांधी के साथ समन्वय करना है, जो अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी), कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) और अधिकांश राज्यों में प्रमुख पदों पर काबिज हैं। किदवई ने पीटीआई-भाषा से कहा कि अगली चुनौती सीडब्ल्यूसी का गठन करना है, जिसमें उनका समर्थन करने वाले जी-23 के अधिकतर लोगों को जगह मिलने की उम्मीद है। खड़गे को राजस्थान के राजनीतिक संकट की तत्काल चुनौती का भी सामना करना पड़ता है, क्योंकि उन्हें अशोक गहलोत और सचिन पायलट से सामना करना पड़ेगा।

सभी विपक्षी दलों को एक साथ लाने की भी होगी चुनौती
किदवई ने आगे कहा कि उन्हें 2024 के आम चुनावों के लिए टीएमसी की ममता बनर्जी, द्रमुक के एमके स्टालिन, जद (यू) के नीतीश कुमार और टीआरएस के के चंद्रशेखर राव के साथ एक व्यापक गठबंधन बनाना है। उधर, राजनीतिक टिप्पणीकार संजय कुमार का कहना है कि पार्टी के लिए बहुत सारी चुनौतियां हैं, और दुर्भाग्य से, खड़गे की नेतृत्व करने की क्षमता की टेस्टिंग कांग्रेस की चुनावी सफलता के मापदंड पर किया जाएगा। गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भाजपा का सामना करने और कर्नाटक से होने वाले अगले साल के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस बहुत अच्छी स्थिति में नहीं दिखती है। 

कितना स्वतंत्र रूप से फैसले कर पाएंगे खड़गे?
‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज’ के एक शोध कार्यक्रम, लोकनीति के सह-निदेशक कुमार ने कहा कि आलोचना शुरू हो सकती है कि नेतृत्व परिवर्तन ने पार्टी के लिए बहुत कुछ नहीं किया है। उन्होंने कहा कि यह देखा जाना बाकी है कि कई आलोचकों ने खड़गे पर कठपुतली होने का टैग लगाया है। आने वाला समय इस बात पर भी निर्भर करेगा कि खड़गे कितना स्वतंत्र रूप से फैसला करते हैं या सलाह के लिए दस जनपथ या फिर राहुल गांधी के पास जाते रहते हैं। कुमार ने यह भी कहा कि कांग्रेस के लिए अंदरूनी कलह एक चुनौती रही है और राजस्थान में हाल के घटनाक्रम ने यह साबित कर दिया है। जब गांधी परिवार को इससे निपटने में समस्या हुई है तो खड़गे को और समस्याएं होंगी।

इन तीन प्रमुख चुनौतियों का खड़गे को करना होगा सामना
उधर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के राजनीतिक अध्ययन केंद्र के एक सहयोगी प्रोफेसर मनिंद्र नाथ ठाकुर ने कहा कि खड़गे और कांग्रेस को तीन मुख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा- हिंदी भाषी क्षेत्र में वापस समर्थन हासिल करना, एक नया सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक विचार पैदा करना, जिससे लोग आकर्षित हो सकें और तीसरा संगठनात्मक संरचना में सुधार लाना। ठाकुर ने ‘पीटीआई’ से कहा, ”वह पार्टी में हर किसी की स्वाभाविक पसंद नहीं हैं और इसलिए, उन्हें इसके लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।” खड़गे के लिए आगे की राह निश्चित रूप से कठिन है, लेकिन पार्टी में कई लोग मानते हैं कि वह इस पद के लिए सही व्यक्ति हैं क्योंकि उनके पास बहुत अनुभव है। वे सभी को साथ लेकर चलते हैं और कांग्रेस के संगठनात्मक कामकाज को अंदर से समझते हैं। 

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