इन महिला डाकुओं से कंपकंपाता था चंबल

परिस्थतियाँ इंसान क्या बना दे ये हम कह नहीं सकते। चंबल की ऐसे ही डकैत महिलाओं की है जिनको पढ़ कर आप खुद जान जायेंगे –

फूलन देवी

डाकू फूलन देवी को बीहड़ में कुख्यात डकैत माना जाता है. जिसे वक्त और हालात ने डाकू बनने पर मजबूर कर दिया था। उसके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था. कहा जाता है कि फूलन को कुछ डाकू उठा ले गए, लेकिन फूलन की आत्मकथा में इस बात को कभी स्पष्ट नहीं किया गया। फूलन ने बताया कि वह कुछ समय बाद डाकुओं के संपर्क में आ गई थी। हालांकि, फूलन की गैंग का सरदार गुज्जर उस पर बुरी नियत रख रहा था, जिसे मारकर डाकू विक्रम मल्लाह ने फूलन का रास्ता साफ़ कर दिया। इसके बाद डाकू विक्रम और फूलन ने अलग गैंग बना लिया।
दूसरी तरफ गुज्जर की मौत से झल्लाए डाकू लाला राम ठाकुर और श्री राम ठाकुर की गैंग ने विक्रम मल्लाह को मार दिया और फूलन के साथ तीन हफ़्तों तक बलात्कार किया। जब वह किसी तरह चंगुल से छूटी तो 1981 में बेहमई गांव पहुंची और 22 सवर्ण जाति के लोगों को लाइन में खड़ाकर गोली मार दी। इस घटना ने उसे देश की सबसे खूंखार डकैत के रूप में पहचान दी।

सीमा परिहार

दस्‍यु सुंदरी सीमा परिहार ने 13 साल की छोटी सी उम्र में ही हथियार उठा लिया था। उनके खिलाफ 70 लोगों की हत्‍या करने का मुकदमा भी दर्ज है। हालांकि, बाद में सीमा ने पुलिस के सामने समर्पण कर अपने जीवन को बदलने का फैसला किया। अब वे देश की महिलाओं के लिए एक आइकन के तौर पर जानी जाती हैं।

पुतली बाई

पुतली बाई को चंबल की पहली महिला डाकू माना जाता है. उसका असली नाम गौहरबानो था. उसके साथ हुई जुल्म ज्यादती ने उसे हथियार उठाने पर मजबूर कर दिया था। चंबल के बीहड़ो पर कभी उसका राज चलता था. उसका नाम आज भी चंबल के बीहडों में बहादुर और उसूलपसंद डाकू के रूप में लिया जाता है।

कुसमा नाइन

कुसमा नाइन बीहड़ का जाना माना नाम था। उसे बेरहमी के लिए जाना जाता था. माना जाता है कि कानपुर देहात के बेहमई कांड का बदला लेने के लिए वह डाकू बन गई थी. दरअसल, उस कांड में डाकू फूलन देवी ने 22 राजपूतों की सामूहिक हत्या की थी। जिसके चलते कुसमा ने बाद में 14 मल्लाहों को मौत नींद की सुला दिया था। कुसमा को चंबल की कुख्यात दस्यु सुंदरी माना जाता था. उसने संतोष और राजबहादुर नामक दो मल्लाहों की आंखें निकाल कर बेरहमी की नई इबारत लिख दी थी।

रेनू यादव

यह दास्तान है उस लड़की की, समय ने जिसके हाथ से कलम छुड़ाकर बंदूक पकड़ा दी और चंबल के बीहड़ को आशियाना बना दिया और उसे ऐसी पहचान दे दी, जो खौफ का पर्याय बन गई—दस्यु सुंदरी रेणु यादव। अदालत ने उसके अतीत से डाकू होने के दाग को मिटाकर पुलिस की फाइलें बंद कर दीं लेकिन रेनू का खानाबदोश जीवन बना दिया।