नई दिल्ली : दिल्ली में प्रदूषण से हाल खराब हैं। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि स्कूलों में प्राइमरी क्लास बंद करने के आदेश दिए गए हैं। हालांकि, दिल्ली की दमघोंटू हवा की परेशानी नई नहीं है, लेकिन क्या इसकी जिम्मेदार केवल राजधानी ही है? आंकड़े बताते हैं कि NCR और अन्य शहरों की गतिविधियां के चलते दिल्ली की सांस फूल रही है। विस्तार से समझते हैं।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियोरोलॉजी (IITM) के डिसीजन सपोर्ट सिस्टम (DSS) के अनुसार, पीएम 2.5 की कुल मात्रा में लोकल सोर्स 20 से 30 प्रतिशत की हिस्सेदारी निभाते हैं। जबकि, अन्य दिल्ली के बाहर यानी NCR और दूसरी जगहों से आते हैं। लोकल सोर्स की बात करें, तो केवल परिवहन ही औसतन 14 फीसदी का योगदान देता है।
DSS के अनुसार, अगर शहर में प्रदूषण फैलाने वाले सोर्स जैसे परिवहन, निर्माण, उद्योग, बायोमास बर्निंग को हटा दिया जाए, तो NCR के शहर और अन्य दिल्ली के 40-45 फीसदी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। झज्जर, रोहतक, सोनीपत और पानीपत उत्सर्जन करने में आगे है। DSS के मुताबिक, पराली का धुआं दिल्ली के प्रदूषण में 28 फीसदी का योगदान देता है।
रिपोर्ट के अनुसार, एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘दिल्ली की एजेंसियां और रहवासी उत्सर्जन को कंट्रोल करने में सक्रिय हैं। कोई नहीं जानता कि एनसीआर के शहरों में इसपर कैसे निगरानी की जा रही है। IITM डेटा बताता है कि प्रदूषण टियर-2 शहरों से आ रहा है। यहां निगरानी की कमी है।’
जानकार बताते हैं कि 25-30 प्रतिशत प्रदूषण NCR में अन्य जगहों से आता है, जिसे ट्रांसबाउंड्री पॉल्युशन कहा जाता है। उन्होंने बताया कि कभी-कभी यह हवा की गति और ऊंचाई के चलते अटक जाता है। उन्होंने कहा कि उच्च स्तरीय हवा प्रदूषण को दिल्ली में लाती है और अगर शहर में तब हवा नहीं चल रही होती, तो प्रदूषण फैलाने वाले जमा हो जाते हैं।
नोएडा प्राधिकरण ने 4.25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया
भाषा के अनुसार, वायु प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ नोएडा प्राधिकरण ने कार्रवाई करते हुए बृहस्पतिवार को विभिन्न प्रतिष्ठानों पर 4.25 लाख रू का जुर्माना लगाया है। नोएडा प्राधिकरण के वरिष्ठ अधिकारी अविनाश त्रिपाठी ने बताया कि ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान के प्रावधानों के अंतर्गत नोएडा प्राधिकरण की टीम ने समस्त क्षेत्रों के मुख्य मार्गों पर 63 टैंकरों के माध्यम से लगभग 165 किलोमीटर में पानी का छिड़काव किया ताकि सड़कों पर उड़ने वाली धूल पर नियंत्रण किया जा सके।