दिल्ली बनाम केंद्र विवाद : सेवाओं पर किसका होगा कंट्रोल? संविधान पीठ याचिका पर 9 नवंबर को करेगी सुनवाई…

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि पांच सदस्यीय संविधान पीठ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र और दिल्ली सरकार की विधायी और कार्यकारी शक्तियों के दायरे से संबंधित कानूनी मुद्दे पर नौ नवंबर को सुनवाई करेगी।

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने कहा कि बेंच दैनिक आधार पर मामले की सुनवाई शुरू करेगी। बेंच ने कहा कि मामला नौ नवंबर, 2022 को सुबह साढ़े 10 बजे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करें। बेंच में जस्टिस एम.आर. शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा भी शामिल हैं।

कागज रहित होगी पूरी कार्यवाही

संविधान पीठ की कार्यवाही पूरी तरह से ‘कागज रहित’ होगी और इसे ‘हरित पीठ’ कहा गया है क्योंकि कार्यवाही के दौरान किसी कागज का इस्तेमाल नहीं होगा या उस पर निर्भरता नहीं रहेगी। मंगलवार को कार्यवाही के दौरान भी किसी कागज का इस्तेमाल नहीं हुआ। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त को कहा था कि दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार की विधायी और कार्यकारी शक्तियों के दायरे से संबंधित कानूनी मुद्दे की सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में एक संविधान पीठ का गठन किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने छह मई को दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण के मुद्दे को पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेजा था। अदालत ने कहा था कि सेवाओं पर नियंत्रण से संबंधित कुछ सीमित मुद्दों की संविधान पीठ में सुनवाई नहीं होती, शेष सभी कानूनी सवालों पर वह विस्तार से विचार करती है।

संविधान पीठ को भेजा गया सीमित मुद्दा

संविधान पीठ को जो सीमित मुद्दा भेजा गया है, वह सेवा शर्तों के संबंध में केंद्र और एनसीटी दिल्ली की विधायी और कार्यकारी शक्तियों के दायरे से संबंधित है। संविधान के अनुच्छेद 239एए(3)(ए) की व्याख्या करते हुए न्यायालय की संविधान पीठ को राज्य सूची में प्रविष्टि 41 के संबंध में उन्हीं शब्दों के प्रभाव की विशेष रूप से व्याख्या करने का कोई औचित्य नजर नहीं आया। बेंच ने कहा कि इसलिए, हम आधिकारिक घोषणा के लिए उपरोक्त सीमित प्रश्न को संविधान पीठ के समक्ष भेजना उचित समझते हैं।

संविधान के अनुच्छेद 239एए का उप अनुच्छेद 3 (ए) (संविधान में दिल्ली की स्थिति और शक्तियों से संबंधित) राज्य सूची या समवर्ती सूची में सूचीबद्ध मामलों पर दिल्ली विधानसभा की कानून बनाने की शक्ति से संबंधित है।

दिल्ली सरकार ने संशोधित जीएनसीटीडी अधिनियम, 2021 की वैधता को दी है चुनौती

केंद्र सरकार ने सेवाओं पर नियंत्रण और उप-राज्यपाल को अधिक शक्तियां देने वाले संशोधित जीएनसीटीडी अधिनियम, 2021 की वैधता और कार्य आवंटन नियम को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की अलग-अलग याचिकाओं पर यह कहकर संयुक्त सुनवाई का अनुरोध किया कि ये प्रथमदृष्टया एक दूसरे से संबंधित प्रतीत होते हैं।

2019 में आया था खंडित फैसला

दिल्ली सरकार की याचिका पर 14 फरवरी, 2019 को जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस भूषण की दो सदस्यीय पीठ ने खंडित फैसला सुनाया था, जिसमें दोनों ने चीफ जस्टिस से राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण के मुद्दे को अंतिम रूप से तय करने के लिए मामला तीन जजों की पीठ को भेजने की सिफारिश की थी। दोनों जज रिटायर हो चुके हैं।

जस्टिस भूषण ने फैसला सुनाया था कि दिल्ली सरकार के पास सभी प्रशासनिक सेवाओं का कोई अधिकार नहीं है। हालांकि, इस पर जस्टिस सीकरी का रुख अलग था। उन्होंने कहा कि नौकरशाही (संयुक्त निदेशक और ऊपर) के शीर्ष पदों पर अधिकारियों की नियुक्ति या तबादला केवल केंद्र सरकार कर सकती है और अन्य नौकरशाहों से संबंधित मामलों पर विचारों में मतभेद के मामले में उप-राज्यपाल की राय जरूरी होगी।

2018 के फैसले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा था कि दिल्ली के उप-राज्यपाल को चुनी हुई सरकार की सहायता और सलाह से काम करना होगा और दोनों को एक दूसरे के साथ सौहार्दपूर्ण तरीके से मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है। 

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