महाशिवरात्रि से जुड़ी अलग-अलग मान्यतायें

महाशिवरात्रि से जुड़ी कई मान्यताएं और परंपराएं हैं। महाशिवरात्रि पर दिन भर तो शिव पूजा की ही जाती है, लेकिन रात्रि पूजन का भी खास महत्व धर्म ग्रंथों में बताया गया है। ऐसा कहा जाता है को भी व्यक्ति महाशिवरात्रि की रात चारों प्रहर भगवान शिव का पूजन विधि-विधान से करता है, उसे अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिल जाती है। महाशिवरात्रि क्यों मनाते हैं, इसे लेकर भी अलग-अलग ग्रंथों में कई कथाएं मिलती हैं। महाशिवरात्रि के मौके पर हम आपको ऐसी ही एक कथा के बारे में बता रहे है, जो सर्वाधिक प्रचलित है।

जब विष्णु और ब्रह्मा स्वयं को मानने लगे श्रेष्ठ

शिवपुराण के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु भगवान में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया। ब्रह्माजी ने कहा कि मैं सृष्टि का निर्माणकर्ता हूं इसलिए मैं श्रेष्ठ हूं, जबकि विष्णु जी को पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ बताया। तभी वहां एक अग्नि रूपी शिवलिंग उपस्थित हुआ। और आकाशवाणी हुई कि जो भी इस अग्नि रूपी शिवलिंग का छोर जान लेगा, वही श्रेष्ठ कहलाएगा। जिसके बाद ब्रह्मा जी और विष्णु शिवलिंग का छोर ढूंढने में लग गए। विष्णु भगवान ने कुछ समय प्रयास किया, जब उन्हें शिवलिंग का छोर नहीं मिला तो वह रुक गए। ब्रह्मा जी के साथ भी यही हुआ, लेकिन स्वयं को श्रेष्ठ बताने के लिए उन्होंने झूठ बोल दिया कि उन्होंने शिवलिंग के छोर का पता लगा लिया है, इसके लिए उन्होंने केतकी के फूल को साक्षी बनाया। तभी वहां भगवान शिव प्रकट हुए और बोले- ये लिंग मेरा ही स्वरूप है। ब्रह्मा के झूठ बोलने पर शिवजी ने उनकी संसार में उनकी पूजा न होने का श्राप दिया और केतकी के फूल उपयोग उनकी पूजा में करने का। साथ ही ये भी कहा कि जो व्यक्ति इस तिथि पर रात में जागकर जो भक्त मेरे लिंग रूप का पूजन करेगा, वह अक्षय पुण्य प्राप्त करेगा। जिस दिन भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए, उस दिन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। इसलिए इस तिथि पर महाशिवरात्रि का पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है।

एक मान्यता ये भी

कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर शिव-पार्वती का विवाह हुआ था। शिव-पार्वती जी के विवाह के संबंध में शिवपुराण में लिखा है कि शिव-पार्वती विवाह मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि सोमवार को हुआ था। उस समय चंद्र, बुध लग्र में थे और रोहिणी नक्षत्र था। शिव जी और माता सती का विवाह चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि रविवार को पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में हुआ था।