छात्र नेता से बने वामपंथ का मुख्य चेहरा, इमरजेंसी में गए जेल, कौन थे सीताराम येचुरी? जानें उनके बारे में कुछ खास बातें…

नई दिल्ली : गुरुवार को 72 वर्ष की उम्र में वरिष्ठ माकपा नेता सीताराम येचुरी का निधन हो गया। वह लंबे समय से सांस की बीमारी से जूझ रहे हैं। एम्स दिल्ली में उनका इलाज चल रहा था।  कम्युनिस्ट नेता के निधन पर पीएम नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपर्ती द्रौपदी मुर्मू, राहुल गांधी समेत कई राजनीति हस्तियों से श्रद्धांजलि दी।

पीएम मोदी ने सीताराम येचुरी के निधन पर शोक व्यक्त किया और सोशल मीडिया पर लिखा, “सीताराम येचुरी के निधन से दुख हुआ। वह वामपंथी के अग्रणी प्रकाश थे और राजनीतिक स्पेक्ट्रम से जुड़ने की अपनी क्षमता के लिए  प्रसिद्ध थे। उन्होंने एक प्रभावी संसद के रूप में अपनी खास पहचान बनाई है। इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ है।”

सीताराम येचुरी के बारे में खास बातें

वामपंथ के राजनेता के साथ-साथ एक वह सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, अर्थशास्त्री और लेखक भी थे। उन्होंने “लेफ्ट हैंड ड्राइव”, “यह हिंदू राष्ट्र क्या है?”, ” घृणा की राजनीति”,  21वीं सदी का समाजवाद जैसी किताबें भी लिखी हैं। आइए जानें उनके जीवन से कुछ कुछ खास बातें-

जन्म और शिक्षा

12 अगस्त 1952 में मद्रास के एक तेलुगू परिवार सीताराम येचुरी का जन्म में हुआ था। पिता एसएस येचुरी राज्य सरकार परिवहन निगम में इंजीनियर थे। वहीं माँ कल्पम येचुरी एक सरकारी अधिकारी थी। बचपन से ही येचुरी पढ़ाई में काफी अच्छे थे। उन्होनें 10वीं तक की पढ़ाई हैदराबाद में स्थित ऑल सेंटस हाई स्कूल से की थी। लेकिन 1969 के तेलंगाना आंदोलन के बाद उनका परिवार दिल्ली शिफ्ट हो गया।  उन्होनें यहां प्रेसिडेंट एस्टेट स्कूल में एडमिशन लिया। सीबीएसई परीक्षा में  ऑल इंडिया रैंक वन हासिल किया। इसके बाद उन्होंने दिए बीए इकोनॉमिक्स होनर्स के लिए दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज में एडमिशन लिया। एमए की पढ़ाई के लिए जेएनयू में दाखिला लिया।

दो शादियाँ की थी

सीताराम येचुरी से अपने जीवन में दो शादियाँ की थी। पहली शादी उन्होंने इंच्राणी  मजूमदार से की थी। वहीं दूसरी पत्नी पत्रकार सीमा चिश्ती थी। दोनों के एक बेटा और एक बेटी है।

 कैसा रहा राजनीतिक करियर?

जेएनयू छात्र नेता के रूप में सीताराम येचुरी का राजनीतिक संघर्ष शुरू हुआ। उन्हें इमरजेंसी के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा। जेएनयू में उन्होंने वामपंथी राजनीति को एक्टिव करने में अहम भूमिका निभाई। 1977 से लेकर 1978 के बीच वह तीन बार जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष बने। 1978 में एसएफआई के अखिल भारतीय  संयुक्त सचिव के रूप में  उन्हें चुना गया। फिर अध्यक्ष बने। 1984 में उन्हें सीपीएम केंद्र समिति के लिए चयनित किया गया। 2005 में वह पहली बार पश्चिम बंगाल से राज्यसभा सदस्य बने। 2017 तक वह राज्यसभा में ही रहे। 2008 में जब भारत अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौता हुआ, इस दौरान सीताराम येचुरी  काफी सुर्खियों में रहे। मनमोहन सिंह की सरकार को माकपा की कई शर्तें भी माननी पड़ी थी।

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