भोपाल : जबलपुर के निजी अस्पताल में अग्निकांड मामले ने हाईकोर्ट ने सरकार को जमकर फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि जिन डॉक्टरों को मामले में निलंबित करना था उन्हें ही जांच की जिम्मेदारी दे दी गई है। कोर्ट ने सवाल उठाया है कि इससे इस मामले की निष्पक्ष जांच कैसे होगी? और साथ ही कोर्ट ने कहा है कि इस मामले की जांच सीबीआई से कराए।
दरअसल, सरकार ने 2 अगस्त को एक नोटशीट पेश की थी। जिसमें कहा गया था कि न्यू लाइफ मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल का निरीक्षण कर कमेटी के सदस्य डॉ एल एन पटेल, डॉ निषेध चौधरी ने अनफिट बिल्डिंग को सही बता कर लाइसेंस जारी करने की अनुशंसा की थी।
साथ ही बताया गया था कि तत्कालीन नर्सिग होम शाखा प्रभारी डॉ कमलेश वर्मा ने इस अस्पताल की फायर एनओसी अवधि खत्म होने के बाद भी उसका पंजीयन निरस्त नहीं किया था। इन्हीं तीनों डॉक्टरों की वजह से 1 अगस्त को अस्पताल में हुए अग्निकांड मैं 8 लोगों की जान चली गई। लेकिन प्रशासन ने इन्हीं तीनों दोषी डॉक्टरों को निजी अस्पतालों के खिलाफ बनाई गई जांच कमेटी में शामिल कर दिया।
बता दें कि हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार और जिला प्रशासन की जमकर भद्द पिट गई। प्रशासन की ओर से पेश की गई रिपोर्ट में उस वक्त पोल खुल गई जब अग्निकांड हादसे के दोषी डॉक्टरों पर कार्रवाई करने के बजाए उल्टे उन्हें ही निजी अस्पतालों की जांच की जिम्मेदारी सौंप दी गई। चीफ जस्टिस रवी मलिमठ और जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल की बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, यदि हमें आपसे संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो मामला सीबीआई को सौंपने पर विचार किया जाएगा। अब 22 अगस्त को इसे लेकर दुबारा सुनवाई होगी।
हाईकोर्ट ने निर्देश देते हुए सरकार को कहा है कि इस अग्निकांड के दोषी डॉक्टरों पर क्या कार्रवाई की गई है और निजी अस्पतालों के खिलाफ क्या किया जा रहा हैं इसे लेकर 22 अगस्त तक अपना शपथ पत्र में पेश करें।
दरअसल मध्य प्रदेश ला स्टूडंट एसोसिएशन ने जबलपुर जिले में खुले लगभग 60 अस्पतालों को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। याचिका के माध्यम से कहा गया था कि पिछले 3 साल में जबलपुर में करीब 60 निजी अस्पताल ऐसे खुल गए हैं जो खुलेआम नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं।