पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने मध्य प्रदेश में शराब बंदी को लेकर दोबारा मोर्चा खोल दिया है।मंगलवार शाम उमा भारती आशिमा मॉल के सामने स्थित अहाते के सामने चौपाल लगा कर बैठ गई।
मध्यप्रदेश के सियासी मैदान में शराबबंदी को लेकर अब एक नया खेल शुरू हो गया है। एक तरफ जहां प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री उमा भारती मप्र में शराबबंदी किये जाने को लेकर लगातार संघर्ष कर रही हैं, वहीं प्रदेश की शिवराज सरकार शराबबंदी के पक्ष में फिलहाल बिल्कुल दिखाई नहीं पड़ रही है। लंबे संघर्ष और मोर्चों के बाद अब उमा भारती ने एक नया पैंतरा जनता के पाले में फेंक दिया है। दो दिन पहले उमा भारती ने मीडिया से चर्चा में यह तक कह दिया कि आगामी विधानसभा चुनाव में जो पार्टी शराबबंदी का समर्थन करेगी जनता उसी को वोट देगी। उमा भारती के इस बयान के बाद प्रदेश में भाजपा में हडकंप सा मच गया है। हर कोई उनके बयान के बाद सख्ते में है। गौरतलब है कि अप्रैल 2022 से नई शराब नीति लागू होने के बाद प्रदेश में शराब की दुकानों की संख्या में बड़ी संख्या में इजाफा हुआ है। इस वर्ष प्रदेश में तीन हजार से अधिक शराब की दुकानें खुल गई हैं। खास बात यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती द्वारा चलाये गये शराबबंदी अभियान को भी शिवराज सरकार ने धत्ता बता दिया और लगातार भोपाल सहित तमाम जिलों में शराब की दुकानों को खोला जा रहा है।
हम जानते हैं कि प्रदेश को शराब से केवल लगभग 10 हजार करोड़ की आमदनी होती है। इस छोटी आमदनी को और बढ़ाने के लिए बीजेपी सरकार प्रदेश को पिअक्कड़ प्रदेश बनाने पर उजारू है। शराब ही वह माध्यम है जिससे प्रदेश में घरेरू और सामाजिक झगड़े बढ़ते हैं।
देखा जाये तो शिवराज सरकार पूर्ववर्ती कमलनाथ सरकार के समय से ही शराबबंदी को लेकर लगातार आवाज उठा रही है। लेकिन वित्तमंत्री जगदीश देवड़ा की सलाह पर प्रदेश में 3065 विदेशी शराब की दुकानें खोलने के निर्णय लिया है। इससे तो लगता है कि बीजेपी सरकार की कथनी और करनी में काफी फर्क है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले दिनों में प्रदेश पिअक्कड़ प्रदेश बन जायेगा। प्रदेश की सरकार ने प्रदेश में देसी के साथ विदेशी शराब बैचने का फॉर्मूला आखिरकार अपना ही लिया। यही कारण है कि जब आबकारी विभाग ने शराब दुकानों की सीमा बढ़ाई तो ठेकेदारों ने नई दुकानें खोल ली और उसके बाहर बोर्ड टांग दिया विदेशी शराब दुकान। विभाग के इस एकदम से भोपाल में कुल 41 नई दुकानें खुल गई हैं। देखा जाये तो पिछले साल 1061 दुकानों पर विदेशी शराब मिलती थी, अब यह संख्या लगभग ढ़ाई गुनी 3605 हो गई है।
*जनता पर होता है सीधा बुरा असर*
अगर प्रदेश सरकार शराबबंदी का समर्थन करें तो निश्चित ही इससे प्रदेश के लाखों-लाख घर सुरक्षित रहेंगे। घर में रहने वाले परिवार सुरक्षित रहेंगे। सरकार शराब को बंद करने की महज बात कर रही है, लेकिन अभी तक सरकार ने ऐसा कोई सख्त कदम उठाया हो ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। सिर्फ बातों में ही लगातार शराबबंदी की बात कही जा रही है। अगर मध्यप्रदेश में शराबबंदी लागू होती तो इससे मध्यम वर्गीय और उसके नीचे स्तर के परिवारों को बहुत राहत मिलेगी। यही नहीं प्रदेश में खराब होती कानून व्यवस्था में सुधार आयेगा और क्राइम रेट में कटौती होगी। क्योंकि शराब का सीधा बुरा असर आम आदमी के जीवन पर होता है।
*अजीबो गरीब बयान देते हैं मुख्यमंत्री*
शराबबंदी को लेकर एक तरफ जहां प्रदेश की महिलाएं और बच्चे सहित भाजपा के वरिष्ठ नेता सड़क पर उतर रहे हैं वो एक बदलाव की आंधी की ओर इशारा करती है। लेकिन प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान शराबबंदी को लेकर जिस तरह के तर्क देते हैं उससे सरकार की नियत मालूम होती है। कई बार मंचों से मुख्यमंत्री ने यह बयान दिया है कि वो खुद शराबबंदी के पक्ष में है, लेकिन अगर जनता शराब पीना खुद छोड़ दे तो शराब की दुकानें खुद-ब-खुद बंद हो जाएगी। मुख्यमंत्री का यह बयान बिल्कुल तर्क संगत नहीं लकता है। क्योंकि जब दुकानों में शराब सस्ती दरों पर उपलब्ध होगी तो आम आदमी तक उसकी पहुंच आसान हो जाती है।
*आम आदमी की पहुंच से दूर हो शराब*
अगर प्रदेश सरकार सच में ही शराबबंदी करना चाहती है और उसे आम आदमी की पहुंच से दूर करना चाहती है तो उसे अपनी आबकारी नीति में परिवर्तन करने की तुरंत आवश्यकता है। अगर सरकार शराब की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी कर दे तो मध्यमवर्गीय और उसके नीचे के लोग शराब से दूर हो जाएंगे। जरूरत इस बात की है तो सरकार को यह कदम तुरंत उठाना चाहिए ताकि लोगों को जल्द से जल्द शराब की इस लत से छुटकारा मिल सके। क्योंकि मंहगी शराब होने के बाद लोगों को खरीदने के लिए अपनी जेब से भारी पैसे निकालने होंगे और आम आदमी रोज-रोज शराब की इतनी मंहगी बोतल खरीदने में सक्षम नहीं है। इस तरह से शराब केवल अमीरों का शौक बन कर रह जायेगा और आम आदमी को इससे पूरी तरह से छुटकारा मिल जायेगा।