भोपालः मध्य प्रदेश में इस साल होने वाले विधानसभा के चुनाव से पहले जय आदिवासी युवा संगठन (जयस) के एक ऐलान ने बीजेपी और कांग्रेस की नींद उड़ा दी है। जयस ने राज्य की 80 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। इतना ही नहीं, जयस विधायक हीरालाल अलावा ने राज्य में थर्ड फ्रंट के गठन के लिए छोटे दलों को साथ लाने का इरादा भी जताया है। इसका सीधा असर प्रदेश के सियासी समीकरणों पर पड़ना तय है।
एमपी की सियासत में आदिवासी वोट बैंक की खासी अहमियत है। आदिवासी वोट बैंक को सत्ता की चाबी माना जाता है। जिस भी दल को इस वर्ग का समर्थन मिलता है, उसे सत्ता मिल जाती है। इसकी वजह भी है। राज्य की 47 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। वहीं कुल 84 सीटें ऐसी हैं, जिन पर आदिवासी निर्णायक स्थिति में हैं।
राज्य के पिछले दो विधानसभा चुनावों पर गौर करें तो वर्ष 2013 में भाजपा ने अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 30 जीती थीं। कांग्रेस को केवल 17 सीटों पर जीत मिली थी और भाजपा सत्ता में आई थी। इसी प्रकार वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 31 सीटों पर जीती और भाजपा 16 पर सिमट गई। इस तरह कांग्रेस को सत्ता मिली।
राज्य में इस साल होने वाले चुनाव के मद्देनजर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दल आदिवासियों को लुभाने में लगे हुए हैं। इसी बीच जयस के प्रमुख हीरालाल अलावा ने 80 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। इसने दोनों दलों की योजनाओं पर असर पड़ना तय है।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो राज्य के मालवा और निमाड़ इलाके में जयस का सबसे ज्यादा प्रभाव है। वहीं, आदिवासी वोट बैंक महाकौशल और विंध्य इलाके में भी हैं। आदिवासियों का रुझान जिस भी दल की तरफ हुआ, उसके लिए सत्ता का रास्ता आसान रहेगा।