भोपाल : विधानसभा चुनावों में हार के बाद प्रदेश कांग्रेस की कमान संभालने वाले पूर्व मंत्री जीतू पटवारी लगातार सरकार से सवाल कर रहे हैं, वे अलग अलग मुद्दों पर प्रदेश सरकार को घेर रहे हैं, कभी वे पत्र के मध्यम से तो कभी सोशल मीडिया के माध्यम से मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव से सवाल पूछ रहे हैं, जीतू पटवारी ने आज X भ्रष्टाचार को लेकर पोस्ट की है और मुख्यमंत्री से सवाल किया है कि मप्र में लोकायुक्त की नियुक्ति कब होगी?
भ्रष्टाचार पर जीतू पटवारी ने सरकार को घेरा
पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने आज सोशल मीडिया X पर कुछ घंटों के अंतराल पर दो पोस्ट किये। उन्होंने पहले जो पोस्ट की उसमें कहा कि MP में सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों के यहां छापा पड़ता है, करोड़ों की बेनामी प्रॉपर्टी मिलती है, सक्रिय सरकार, लोकप्रिय लोकायुक्त का माहौल बनता है लेकिन, ऐसा क्या है कि फिर भी भ्रष्ट चेहरों का कुछ नहीं बिगड़ता। सजा तो दूर, मामले कोर्ट तक ही नहीं पहुंच पाते, क्योंकि लोकायुक्त जांच आराम से चलती रहती है।
लोकायुक्त छापों और परिणाम पर उठाये सवाल
उन्होंने आगे लिखा कि पिछले 05 साल में 76 छापे पड़े, 62 मामलों में अभी तक जांच ही चल रही है, 06 मामलों की जांच पूरी तो हो गई, लेकिन सरकार ने कोर्ट में केस चलाने की मंजूरी नहीं दी, बाकी 08 मामले कोर्ट में हैं। सवाल तो यह भी है कि पिछले 04 महीने में एक भी अधिकारी-कर्मचारी के यहां लोकायुक्त ने छापा नहीं मारा, क्यों? क्या ये राजनीतिक मजबूरी है? या फिर, कोई छुपा हुआ एजेंडा?
एक दो विभागों को निशाना बनाये जाने के आरोप
जीतू पटवारी ने लिखा – मीडिया रिपोर्ट्स और विशेषज्ञों का स्पष्ट रूप से मानना है कि लोकायुक्त और लोकायुक्त संगठन पर जितने करोड़ रुपए का बजट खर्च होता है, उतना पैसा भी भ्रष्ट सरकारी अफसरों से वसूल नहीं हो पाता?अब यदि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए कार्रवाई की बात करें, तो सजा का प्रतिशत भी बहुत कम है। क्या वजह कि एक-दो विभाग ही हमेशा निशाने पर रहते हैं जबकि, भ्रष्टाचार के “संस्कार” सभी विभागों की शोभा बढ़ा रहे हैं।
भ्रष्ट अफसरों की संपत्ति राजसात नहीं करने की पूछी वजह
उन्होंने लिखा, पूछा तो यह भी जाना चाहिए कि 2011 में मप्र सरकार द्वारा बनाए राजसात कानून के तहत भ्रष्ट अफसरों की संपत्ति राजसात क्यों नहीं हो पा रही है? लोकायुक्त संगठन में भी विजिलेंस अफसर की व्यवस्था प्रभावी क्यों नहीं है? भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1) (डी) में भ्रष्ट लोकसेवकों के विरुद्ध जांच के बाद कार्रवाई की जाती है। दोष सिद्ध होने के बाद चार से सात साल तक की सजा और जुर्माना का प्रावधान है, इस लिहाज से मध्यप्रदेश की स्टेटस रिपोर्ट क्या है?
सीएम डॉ मोहन यादव से पूछे सवाल
पीसीसी अध्यक्ष ने सवाल किया – कर्ज लेकर, कर्जदार प्रदेश में सरकार चलाने वाली भाजपा क्या भ्रष्टाचार में भागीदार है? यह एक ऐसा सवाल है जो पिछले 20 सालों से पब्लिक डोमेन में है। वर्ष 2003 के बाद के 04 मुख्यमंत्री भी इस सवाल का निर्णायक जवाब नहीं दे पाए हैं क्यों? क्या डॉ मोहन यादव इस दिशा में कोई प्रभावी पहल करेंगे? क्या चाल, चेहरे और चरित्र की चर्चा करने वाले दल की नेतृत्व पंक्ति इस बात का विश्वास दिला पाएगी कि जनता भ्रष्ट व्यवस्था से निजात पा सकती है?
जीतू पटवारी ने अपनी इस पोस्ट को टैग करते हुए एक और पोस्ट की जिसमें उन्होंने मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव से तीन सवाल पूछे, जीतू पटवारी ने पूछा – मुख्यमंत्री जी…
01. मध्यप्रदेश में स्थाई लोकायुक्त की नियुक्ति कब होगी?
02. सरकार ने कितने नेताओं के खिलाफ लोकायुक्त जांच बंद करने के आदेश दिए हैं?
03. प्रदेश में आरटीओ के 16 बैरियर पर हर महीने 230 करोड रुपए से ज्यादा की वसूली हो रही है? लूट के जिम्मेदारों तक लोकायुक्त की पहुंच कब होगी?
पोस्ट के अंत में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि तीनों ही सवालों को लेकर भाजपा सरकार लोकसभा चुनाव के पूर्व श्वेत-पत्र जारी करे, भ्रष्टाचार के इतने गंभीर आरोपों को लेकर यदि अभी भी लापरवाही बरती गई, तो यह मान लिया जाएगा कि भाजपा पूरी तरह से भ्रष्टाचार को पोषित, संरक्षित और सुरक्षित करती है।