नई दिल्ली : राहुल गांधी इन दिनों कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक की भारत जोड़ो यात्रा पर निकले हैं। इस यात्रा पर वह अब तक करीब 700 किलोमीटर का सफर तय कर चुके हैं और यात्रा कर्नाटक पहुंच गई है। आने वाले दिनों में यह यात्रा महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, यूपी और राजस्थान जैसे राज्यों से गुजरेगी। वहीं इसी दौरान हिमाचल प्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं। ऐसे में राहुल गांधी की रणनीति को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इन दोनों राज्यों से वह दूर क्यों रहेंगे, जहां चुनाव होने वाले हैं। अब इस चिंता का समाधान शायद कांग्रेस ने ढूंढ निकाला है। राहुल गांधी की बजाय प्रियंका गांधी इन दोनों ही राज्यों में चुनाव प्रचार में हिस्सा लेंगी।
इस तरह कांग्रेस की रणनीति यह है कि राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के जरिए देश भर में माहौल बनाएंगे और प्रियंका गांधी प्रचार की कमान संभालेंगे। महिला नेता होने के चलते प्रियंका गांधी पर अटैक करना भी भाजपा और अन्य दलों के लिए मुश्किल होगा। इसके अलावा पार्टी प्रियंका गांधी को भी आजमा लेना चाहती है। चर्चा है कि नवंबर के आखिर या फिर दिसंबर के शुरुआती सप्ताह में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं। उस दौरान भी कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा जारी रहेगी, जो 5 महीने तक के लिए निकली है। ऐसे में राहुल गांधी का सबसे मुफीद विकल्प प्रियंका गांधी ही हो सकती हैं।
गुजरात में कांग्रेस नेताओं का लगातार हो रहा पलायन
गुजरात कांग्रेस के सीनियर नेता अर्जुन मोढवाडिया ने कहा कि राज्य में प्रियंका गांधी प्रचार करेंगी। वह जल्दी ही गुजरात पहुंच सकती हैं। दरअसल गुजरात में कांग्रेस चिंताजनक हालात से गुजर रही है। राज्य में हार्दिक पटेल समेत कई नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस के आगे चुनौती है कि वह अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाए और जनता में भी पैठ बना सके। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस की राह आसान नहीं है।
वीरभद्र बिना पहली बार हिमाचल में चुनाव लड़ेगी कांग्रेस
दिग्गज नेता और 6 बार के सीएम रहे वीरभद्र सिंह की गैरमौजूदगी में कांग्रेस यहां पहली बार चुनाव में उतरने वाली है। ऐसे में वीरभद्र की पत्नी प्रतिभा सिंह को ही कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर कमान दी है। अब देखना होगा कि राहुल गांधी की बजाय प्रियंका की ज्यादा सक्रियता पार्टी को कितना फायदा पहुंचाती है। कांग्रेस के नए बनने वाले राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए भी दोनों राज्यों के चुनाव पहली अग्निपरीक्षा के तौर पर होंगे।