मध्य प्रदेश की जीवनदायनी नदी नर्मदा का जल बढ़ते प्रदूषण के कारण अब प्राणघातक होता जा रहा है। एक रिपोर्ट में पता चला है कि नर्मदा का पानी पीने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है। नर्मदा जल को घरेलू कार्यों के लिए भी अयोग्य बताया गया है। यह चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आने के बाद नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रणेता मेधा पाटकर ने कहा है कि नर्मदा का शुद्धिकरण करोड़ो के फंड से नहीं, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और औद्योगिक अवशिष्ट रोकने से, खेती में जैविकता लाने से ही होगा।
दरअसल, पश्चिम निमाड़ के बड़वानी, धार जैसे जिलों के लोग काफी वर्षों से ये कहते रहे हैं कि नर्मदा नदी के पानी का स्वाद और रंग पहले से बदला है और मैलेपन में भी बढ़ोतरी हुई है। लेकिन जब मुंबई की कल्पिन वाटरटेक नाम की एक प्रयोगशाला में इसका वैज्ञानिक परिक्षण किया गया तो चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई। सोशल एक्टिविस्ट कमला यादव ने राजघाट/कुकरा गाँव के पानी का नमूना लेकर लैब में जांच के लिए भेजा था। IS-10500 के आंतरराष्ट्रीय निकषों के तहत जाँच कराई गई तब यह निष्कर्ष निकला कि यह पानी न तो पीने लायक है, और न ही घरेलू कार्यों के लिए उपयुक्त है। इतना ही नहीं सिंचाई भी, कुछ ही प्रकार के फसलों की हो सकती है। सभी प्रकार की खेती के लिए भी नर्मदा का पानी उपयुक्त नहीं है।
कमला यादव ने बताया कि प्रयोगशाला में वैज्ञानिकों ने चार प्रकार के परिणामों की जाँच की थी। इसमें रंग, मैलापन, गंध, स्वाद सही न होना बताया गया है। रिपोर्ट में पाया गया कि नर्मदा के पानी में कैल्शियम की मात्रा अधिक है और यह Hard Water याने ‘कठिन पानी’ बताया गया है। कैल्शियम की मात्रा अधिकतम 200 होनी चाहिए, जबकि नमूने में 306 यूनिट्स पाया गया है। इससे पथरी की बीमारी, किडनी पर असर आदि होता है। नर्मदा जल में नायट्रेट की मात्रा भी उच्च स्तर तक पहुंची है, जिसके कई सारे असर हैं। पानी में शैवाल छाकर उससे जल शुद्धि का कार्य करने वाले अन्य जलजीव खत्म हो रहे हैं।