जबलपुर : हमेशा विवादों में रहने वाली मध्य प्रदेश मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति का दर्द छलक आया है। जबलपुर में स्थित प्रदेश की इकलौती मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉक्टर अशोक खण्डेलवाल ने कहा कि स्टाफ की कमी से यूनिवर्सिटी चलाने में दिक्कत हो रही है लेकिन सरकार है कि ज़रुरी स्टाफ दे ही नहीं रही, कुलपति ने अजीब सा तर्क देते हुए कहा कि उन्हें जरुरत AK 47 की है लेकिन वो बारह बोर की बंदूक में तेल लगाकर काम चला रहे हैं। बता दें कि एमपी मेडिकल यूनिवर्सिटी में अधिकारियों-कर्मचारियों के 86 फीसदी पद खाली हैं। जबलपुर में स्थित इस एमपी मेडिकल यूनिवर्सिटी की स्थापना साल 2011 में की गई थी, लंबे इंतज़ार के बाद हाल ही में यूनिवर्सिटी की विशाल बिल्डिंग तो बनाकर तैयार कर दी गई लेकिन अब यहां काम करने वाले कर्मचारियों का टोटा है।
इस यूनिवर्सिटी पर प्रदेश के सभी मेडिकल, डेंटल, पैरामेडिकल, नर्सिंग, आयुष, होम्योपैथी सहित चिकित्सा शिक्षा के सभी कोर्स संचालित करने वाले कॉलेजों के रैगुलेशन का जिम्मा है, सभी कॉलेजों में इसी यूनिवर्सिटी को समय पर परीक्षाएं करवाकर रिजल्ट देना है लेकिन परीक्षाएं सालों की देर से नहीं हो रहीं हैं।
बीएससी नर्सिंग फर्स्ट ईयर की परीक्षा बीते 3 सालों से नहीं हुई, बीएएमएस फर्स्ट ईयर की परीक्षा का टाईम टेबिल 31 बार बदल दिया गया। ऐसे मेें जब आए दिन परेशान छात्र यूनिवर्सिटी का घेराव कर रहे हैं तो कुलपति का दर्द छलक आया है, कुलपति ने कहा कि समय पर परीक्षाओं सहित इतना काम करवाने के लिए उन्हें स्टाफ की जरुरत है लेकिन यहां 86 फीसदी पद खाली हैं ।
कुलपति डॉक्टर अशोक खण्डेलवाल ने कहा कि उन्हें जरुरत एके 47 की है लेकिन वो बारह बोर की बंदूक में तेल डालकर काम चला रहे हैं, कुलपति ने सरकार से खाली पदों को भरने की गुजारिश की है। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक एमपी मेडिकल यूनिवर्सिटी में 240 पद स्वीकृत हैं, स्वीकृत पदों के मुताबिक यूनिवर्सिटी में कुलपति सहित सिर्फ 35 पद भरे हैं बाकी 205 पद खाली हैं, जो 35 कर्मचारी अधिकारी कार्यरत हैं उनमें से अधिकांश प्रतिनियुक्ति पर हैं ।
बेपटरी एकैडमिक कैलेण्डर पर एक तरफ छात्र संगठन लगातार यूनिवर्सिटी को घेर रहे हैं और दूसरी तरफ खाली पदों पर कुलपति की ये साफगोई, ज़ाहिर है सरकार की ही चिंता बढ़ा रही है, देखना होगा कि प्रदेश की चिकित्सा शिक्षा को पटरी पर लाने गठित की गई इस मेडिकल यूनिवर्सिटी के खाली पद कब तक भरे जाते हैं क्योंकि इन सबके बीच नुकसान तो सिर्फ छात्र-छात्राओं का हो रहा है।