नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने पिछले साल जून में महाराष्ट्र में घटे राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर उद्धव गुट बना शिंदे गुट मामले में अपना फैसला सुना दिया। दरअसल, उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया था जो कि उन्हें संविधान के अनुसार मुख्यमंत्री के पद से हटा देता है। बता दें कि उद्धव ठाकरे ने स्वेच्छा से इस्तीफा दिया था और उन्हें इस्तीफे को रद्द करने की कोई विधि नहीं है। भारतीय संविधान में इस्तीफा के प्रावधान हैं और इसे अधिकारियों को स्वेच्छा से देने की स्वतंत्रता होती है। पुरानी सरकार को बहाल करने के लिए नए चुनाव की आवश्यकता होती है और अगली सरकार के लिए नए नेताओं का चयन किया जाता है।
राज्यपाल के फ्लोर टेस्ट को ठहराया गलत
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के फ्लोर टेस्ट को गलत ठहराया है। इसलिए अब स्पीकर शिवसेना के 16 विधायकों पर जल्द ही अपना निर्णय लेगा। मामले में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि स्पीकर को अयोग्यता याचिकाओं पर उचित समय के भीतर फैसला करना चाहिए। आगे कहा कि यथास्थिति बहाल नहीं की जा सकती क्योंकि उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया और अपना इस्तीफा दे दिया।
राज्यपाल के पास कोई संचार नहीं-SC
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि राज्यपाल के पास ऐसा कोई संचार नहीं था जिससे वह यह निर्णय ले सकते थे कि विधायक सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते हैं। शिवसेना के विधायकों के एक गुट ने राज्यपाल को उद्धव ठाकरे की अधिकृत विधायक दल से अलग होने का प्रस्ताव पेश किया था। राज्यपाल ने इस प्रस्ताव पर भरोसा करते हुए निष्कर्ष निकाला कि उद्धव ठाकरे अधिकांश विधायकों का समर्थन खो चुके हैं।
शिंदे ने 30 जून को ली थी CM पद की शपथ
बता दें कि महाराष्ट्र में शिवसेना विधायकों की बगावत के बाद महाराष्ट्र विकास अघाड़ी गठबंधन सरकार पिछले साल जून में गिर गई थी। जिसके बाद 30 जून को शिंदे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। जिसके खिलाफ उद्धव ठाकरे सुप्रीम कोर्ट गए थे। इस मामले को पांच जजों की कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच को ट्रांसफर किया गया था। वहीं, आज अंतत: चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने सुनवाई की।