नई दिल्ली : कांग्रेस से 5 दशकों का नाता तोड़कर अपनी अलग पार्टी बनाने वाले गुलाम नबी आजाद के एग्जिट का फायदा युवा नेता विकार रसूल वानी को मिलता दिख रहा है। पिछले दिनों कांग्रेस के जम्मू-कश्मीर के अध्यक्ष बनाए गए विकार रसूल वानी को रविवार को दिल्ली में हुई हल्ला बोल रैली को संबोधित करने का मौका मिला। यह उनके लिए बड़ा मौका माना जा रहा है क्योंकि इसमें सिर्फ दो अन्य प्रदेश अध्यक्षों को ही मौका मिला था, जो वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं। मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ और हिमाचल की अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने सभा को संबोधित किया। इसके बाद विकार रसूल वानी को मौका मिला, जो हाल ही में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने हैं।
यदि गुलाम नबी आजाद कांग्रेस में होते तो जम्मू-कश्मीर से प्रतिनिधि के तौर पर वही इस रैली को संबोधित करते। ऐसे में साफ है कि गुलाम नबी आजाद के एग्जिट के चलते विकार रसूल वानी को बड़ा प्रमोशन मिलता दिख रहा है। यही नहीं अपने संबोधन विकार रसूल वानी ने भी परिपक्वता दिखाते हुए गुलाम नबी आजाद का जिक्र तक नहीं किया। जबकि माना जा रहा था कि वह अपने भाषण में आजाद का जिक्र करते हुए पार्टी छोड़ने को लेकर उन पर हमला बोल सकते हैं। इसके अलावा किसी और सीनियर नेता ने भी गुलाम नबी आजाद के पार्टी छोड़ने पर कुछ भी नहीं कहा।
अधीर रंजन बोले- कांग्रेस तो एक दरिया है
हालांकि अधीर रंजन चौधरी ने जरूर तंज कसते हुए कहा कि कांग्रेस तो एक दरिया की तरह है, जिसमें कभी मिलता है और कभी भी कोई जा सकता है। इस बीच कांग्रेस के लिए चिंता की बात यह भी रही कि रैली में हिमाचल से आने वाले सीनियर नेता आनंद शर्मा और सांसद मनीष तिवारी भी नहीं पहुंचे। मनीष के समर्थकों का कहना है कि वह देश से बाहर है, इसलिए उपस्थित नहीं हो पाए। आनंद शर्मा और मनीष तिवारी ने पिछले दिनों अध्यक्ष पद के चुनाव पर सवाल उठाए थे। ऐसे में इस बात के कयास भी लग रहे हैं कि क्या मनीष तिवारी और आनंद शर्मा की बगावत निर्णायक स्थिति में पहुंच गई है।
आनंद पर पार्टी नेता का तंज, शायद महंगाई की टेंशन नहीं
गौरतलब है कि आनंद शर्मा ने तो गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस छोड़ने के बाद भी उनसे मुलाकात की थी। इसके अलावा आनंद ने हिमाचल प्रदेश कैंपेन कमिटी के अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा दे दिया था। पार्टी के एक सीनियर नेता ने आनंद शर्मा की गैरहाजिरी को लेकर तंज कसते हुए कहा, ‘यदि उनके जैसा सीनियर नेता रैली में नहीं आता है तो इससे पता लगता है कि वह शायद बढ़ती महंगाई को लेकर गंभीर नहीं हैं। हालांकि बागियाों ही गिने जा रहे भूपिंदर सिंह हुड्डा और महाराष्ट्र के पूर्व सीएम पृथ्वीराज चव्हाण जरूर रैली में शामिल हुए।