ये थी सच्चाई अमिताभ की फिल्म डॉन के सुपरहिट होने की

अमिताभ बच्चन का स्टारडम आज भी दर्शकों के लिए बहुत बड़ा है। ये स्टारडम 70-80 के दशक के समय भी था, मगर कुछ फिल्मों की असफलता ये दर्शाती है कि महज स्टारडम की वजह से फ़िल्में हिट नहीं हुआ करती है। आज हम आपको अमिताभ बच्चन की फिल्म डॉन के किस्से के बारे में बता रहे है जो डब्बे में जाते जाते रह गयी और बाद में एक ब्लॉकबस्टर फिल्म बन गयी।

साल 1978 में अमिताभ बच्चन, प्राण और जीनत अमान के अभिनय से सजी फिल्म डॉन की कहानी सलीम-जावेद द्वारा लिखी गयी थी। फिल्म बनने से पहले ये कहानी धर्मेंद्र, जीतेन्द्र और देव आनंद जैसे कलाकारों के पास जाकर रिजेक्ट हो गयी थी। फिर इस कहानी पर फिल्म बनाने का मुश्किल फैसला अमिताभ बच्चन, जीनत अमान और निर्देशक चंद्रा बारोट ने लिया, वो भी सिर्फ इसीलिए कि वो अपने एक दोस्त को कर्ज से मुक्ति दिला सकें।

साल १९७२ में नरीमन ईरानी नामक निर्माता ने सुनील दत्त और वहीदा रहमान को लेकर ‘जिंदगी-जिंदगी’ नामक एक फिल्म बनाई जो डब्बे में चली गयी और ईरानी पर खूब कर्जा चढ़ गया। इस कर्जे को चुकाने में मदद करने के लिए ही फिल्म ‘डॉन’ को बनाने का जिम्मा उठाया गया था। 

नरीमन ईरानी एक निर्माता होने के साथ एक फिल्म छायाकार भी थे। अमिताभ बच्चन, जीनत अमान और चंदा बारोट के साथ उनकी दोस्ती मनोज कुमार की फिल्म ‘रोटी कपडा और मकान’ की शूटिंग के दौरान हुई थी।

फिल्म की शूटिंग शुरू हुई मगर फिल्म पूरी तरह से बनने के पहले ही फिल्म के निर्माता नरीमन ईरानी की एक दुर्घटना में मौत हो गयी। नरीमन ईरानी की मौत ने सबकुछ बदलकर रख दिया। फिर इस फिल्म को बनने में तीन से चार साल लग गए। 

१२ मई १९७८ को जब ‘डॉन’ सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई तो पहले हफ्ते में कुछ ख़ास नहीं कर पायी थी। फिल्म के खराब प्रदर्शन निराश हुए फिल्म के निर्देशक चंद्रा बारोट तब अपने दोस्त मनोज कुमार से मिले। मनोज कुमार को ‘डॉन’ फिल्म दिखाई गयी। 

मनोज कुमार ने फिल्म देखने के बाद चंद्रा बारोट से कहा कि ‘फिल्म के दूसरे हाफ में केवल लड़ाइयां रखी गयी है, दर्शकों को कुछ मोहलत देनी चाहिए। एक काम करों इसके दूसरे हाफ में एक गाना डाल दो।’ इसके बाद निर्देशक चंद्रा बारोट संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी से मिले और मनोज कुमार की सलाह से उन्हें अवगत कराया।

कल्याणजी-आनंदजी ने चंद्रा को बताया कि ‘एक गीत है जो हमने देव आनंद की फिल्म बनारसी बाबू के लिए तैयार किया था, मगर देव साहब को वो गीत कुछ ख़ास पसंद नहीं आया और उसे फिल्म में ना रखने का फैसला कर लिया। आप सभी उस गीत को सुन ले और पसंद आये तो शूटिंग कर लें।’ 

गाना सुनने के बाद फिल्म की कहानी में थोड़ा सा बदलाव किया गया। वो बदलाव ये था कि जब अमिताभ बच्चन जेल से भागते है तो भागते-भागते एक गांव में आ जाते है। इन्हीं गांववालों के बीच ये गीत अमिताभ बच्चन गाते है। किशोर कुमार की आवाज़ में गाये इस गीत को फिल्म ‘डॉन’ में शामिल कर लिया गया। फिल्म में इस गाने को डालने के बाद फिल्म का रिजल्ट भी अच्छा आने लगा। फिल्म ने रफ़्तार पकड़ी और साल १९७८ की एक बड़ी हिट फिल्म साबित हुई। 

इस तरह ‘खाइके पान बनारस वाला’ गीत ने डॉन फिल्म की किस्मत बदल दी। आज भी इस गीत में वही मस्ती है जो उस समय अमिताभ बच्चन ने अपने बेटे अभिषेक बच्चन के डांस स्टेप की नक़ल करके की थी। उस समय अभिषेक बच्चन ५ साल के थे। बता दें कि फिल्म की शूटिंग के समय पैरों में चोट लगी होने के बावजूद एंटीबायोटिक लेकर अमिताभ ने नंगे पांव गाने की शूटिंग पूरी की थी।

खैर, फिल्म में इस गाने का पूरा श्रेय तो अभिनेता मनोज कुमार को ही जाता है। अगर उन्होंने फिल्म के दूसरे हाफ में गाना डालने का सुझाव ना दिया होता तो ना ये गाना मिलता और ना ही फिल्म ब्लॉकबस्टर हिट होती।