उज्जैन : 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन के विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग, भगवान महाकालेश्वर में सावन के प्रथम दिन आज दिनांक 14 जुलाई गुरुवार को प्रातः 4 बजे मंदिर के पुजारियों द्वारा मंत्रोच्चारण के साथ भस्म आरती की गई। मंदिर प्रांगण का पूरा माहौल महादेवमयी दिखा, वहां मौजूद भक्तों ने जोर-जोर से हर हर महादेव के नारे लगाए।
भस्म आरती के उपरांत पुजारियों द्वारा महाकाल को विशेष श्रृंगार से सजाया गया और बाबा महाकाल को भस्म चढ़ाई गई इसके बाद महादेव की पूजा आरती की गई। पुराणों की माने तो केवल उज्जैन स्थित महाकालेश्वर को ही मान्य शिवलिंग कहा गया है। पुराणों के अनुसार समय का चक्र और ब्रह्मांड के सभी चक्र उज्जैन से ही चलते हैं क्योंकि महाकाल केवल पृथ्वीलोक के अधिपति ही नहीं है बल्कि संपूर्ण जगत के अधिष्ठाता भी हैं। इस जगत में जो भी क्रियाएं हैं वह सभी महाकाल को साक्षी मानकर ही पूर्ण होती है।
कहते हैं कि एक समय दूषण नाम का एक दैत्य पृथ्वी पर लोगों के लिए काल बनकर आया था। जिसके बाद लोगों ने महादेव से रक्षा के लिए प्रार्थना की। भक्तों की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान महादेव एक ज्योति के रूप में उज्जैन में प्रकट हुए और दुष्ट दूषण का वध किया। दूषण के व्रत करने के बाद भगवान भोलेनाथ उज्जैन में महाकाल के रूप में विराजमान हुए।
ऐसा भी बताया जाता है कि उज्जैन में साढ़े तीन काल विराजमान हैं जोकि महाकाल, कालभैरव, गढ़कालिका और अर्थ काल भैरव के नाम से जाने जाते हैं। मान्यता है कि जो महाकाल और जूना महाकाल के दर्शन करने जाते हैं उन्हें यहां भी दर्शन करना चाहिए। इसी प्रकार महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के भी तीन खंड बताए जाते हैं जिसमें सबसे ऊपर नागचंद्रेश्वर मंदिर मध्य में ओमकारेश्वर मंदिर और सबसे निचले खंड में महाकालेश्वर मंदिर स्थित है। नागचंद्रेश्वर शिवलिंग के दर्शन वर्ष में केवल एक बार नाग पंचमी के दिन ही करने के लिए भक्तों को मिलते हैं।