भोपाल : बीजेपी की वरिष्ठ नेता उमा भारती ने कहा है कि इस साल मार्च से लेकर जून तक का समय उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण रहा। उन्होंने कहा कि ‘इस दौरान जो कुछ धरातल पर इस तरफ घट गया उसके बारे में आगे कभी आपसे चर्चा करूंगी।’ साथ ही ये भी बताया कि देवप्रयाग से विष्णु प्रयाग तक की यात्रा ने उन्हें कितना समृद्ध किया है।
उमा भारती ने साझा की अपनी यात्रा स्मृतियाँ
इस साल लोकसभा चुनावों के दौरान लगभग पूरे समय उमा भारती धार्मिक और आध्यात्मिक यात्रा पर रहीं। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए एक्स पर लिखा है कि ’11 मार्च से देवप्रयाग से विष्णु प्रयाग तक गंगा जी के पंच प्रयागों पर शास्त्रोक्त विधि से आराधना हुई एवं मेरा वहां प्रवास रहा। इसी बीच में गंगोत्री, केदारनाथ और विष्णु प्रयाग के बाद भगवान बद्रीनाथ के दर्शन भी किये और गंगा की आराधना का एक हिस्सा पूरा हुआ। मैंने गंगा से हर प्रयाग पर प्रार्थना की है कि आप स्वयं अपने रास्ते के अवरोधक हटाइए और अविरल-निर्मल होकर गंगासागर तक जाइए।
कहा- जिंदगी अलौकिकता एवं आध्यात्मिकता के अनुभव से परिपूर्ण हो गई
आगे उन्होंने लिखा है कि ‘फिर मैं पहुंची उत्तराखंड के कुमाऊं के हिस्से में, और मेरी जिंदगी अलौकिकता एवं आध्यात्मिकता के अनुभव से परिपूर्ण हो गई। गढ़वाल का हिस्सा शिवलोक है तो कुमाऊं के जिस हिस्से मे मैं थी वह विष्णु लोक है। वहां मैं अल्मोड़ा जिले में स्थित डोल आश्रम में रही तथा वहीं से जागेश्वर, मुक्तेश्वर, वाराही देवी और देवगुरु पर्वत की यात्रा की। कुछ समय तो मैं निशब्द रही क्योंकि वहां जो परिपूर्णता का बोध हुआ उसके लिए शब्द ही नहीं है। अमरकंटक के कल्याण बाबा जिन्होंने आसेतु हिमालय 50 साल तक घोर तप किया है एवं तप की सभी विधायें पूरी की हैं, वह एक अलौकिक संत हैं। उन्होंने अमरकंटक में आदिवासी वर्ग के कल्याण के लिए शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभिनंदनीय कार्य किया। उनका अल्मोड़ा जिले का डोल का आश्रम तो मेरी दृष्टि में इस पृथ्वी का दिव्यतम आश्रम है। वह चारों तरफ वाराही, जागेश्वर, देव गुरु पर्वत, पुरातन विष्णु मंदिर एवं मुक्तेश्वर इनकी घाटी में स्थापित है एवं भारत के सबसे बड़े श्रीयंत्रों में से एक यहां पर पूरे विधि विधान से पूजित हो रहा है। यहां भी शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में अमरकंटक की तरह ही काम हो रहा है।’
अपने बाबा के बारे में बताया
उमा भारती ने कहा कि ‘1992 में जब मैंने अमरकंटक में संन्यास की दीक्षा ली थी तब बाबा ने ही मेरे पिता के जैसे भूमिका निभाते हुए मेरे सन्यास दीक्षा के सभी कार्यक्रमों का एवं विशाल भंडारे का आयोजन किया था। मैं सन्यास दीक्षा के बाद जब भी अमरकंटक गई तो उनके आश्रम में महीनों रही लेकिन संयोग से बाबा उस समय वहां नहीं होते थे। डोल में मुझे वह सौभाग्य मिल गया जब मैं सुबह एवं शाम उनके भक्तों के साथ बाबा के सानिघ्य में बैठी। वह एक महान तपस्वी एवं अलौकिक संत हैं। उनके डोल आश्रम में हजारों की संख्या में जो लोग आते हैं वह वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर एवं शिक्षाविद होते हैं एवं मंत्र मुग्ध होकर बाबा के साथ बैठे रहते हैं। बाबा 84 वर्ष की आयु में भी बच्चों की तरह सरल एवं फुर्तीले है। मुझे तो बाबा में अपने माता-पिता गुरु सबका दर्शन हुआ। मेरे गुरु श्री विश्वेष तीर्थ महाराज एवं गुरु तुल्य आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के देह त्याग के बाद मेरे जीवन में एक सन्नाटा आ गया था लेकिन बाबा के पास रहने के बाद मैं आनंद एवं ऊर्जा से भरकर वापस लौटी हूं। 11 मार्च से लेकर 29 जून तक जो कुछ धरातल पर इस तरफ घट गया उसके बारे में आगे कभी आपसे चर्चा करूंगी।’