मध्यप्रदेश गोंड आदिवासी जीवन आखिर क्या है?

भारत के वृहत्‍तम आदिवासी समुदाय गोंड की उत्‍पत्ति द्रविड़ों से हुई है और उनका अस्तित्‍व आर्य युग से पहले का माना जा सकता है। गोंड शब्‍द कोंड से आया है जिसका अर्थ द्रविड़ मुहावरे में हरे-भरे पहाड़ों से है। गोंड स्‍वयं को कोई अथवा कोईतुरे कहते थे किंतु कई और लोग उन्‍हें गोंड कहते थे क्‍योंकि वे हरे-भरे पहाड़ों में रहते थे।

मध्‍य प्रांत को गोंडवाना कहा जाता था क्‍योंकि वहां गोंड लोगों का आधिपत्‍य था। आईन-ए-अकबरी में उत्‍तर, मध्‍य तथा दक्षिण भागों में स्थित चार पृथक गोंड साम्राज्‍यों का उल्‍लेख किया गया है। समय के साथ उन्‍हें शनै: शनै: अपने साम्राज्‍यों तथा भूभागों से वंचित कर दिया गया और उनका जीवन खतरे में पड़ गया।

गोंड संस्कृति

गोंड समूह अपने रीति-रिवाजों व परम्पराओं से बंधा हुआ है। जन्म से लेकर मृत्यु तक कई परम्पराओं को आज भी निभाते चले आ रहे हैं।

अन्य जनजातियों की तरह गोंडों में भी स्त्री-पुरुष दोनों को बराबरी का दर्जा मिला हुआ है। पर्दा प्रथा से दूर गोंड नारी अपना जीवनसाथी चुनने में भी पूरी तरह स्वतंत्र होती है। आधुनिक समाज के विपरीत आदिम समाज में आज भी महिलाओं को सम्मानित समानता का दर्जा प्राप्त है।

गोंड परिवारों में विवाह की अलग-अलग प्रथाएं प्रचलित हैं जो अत्यंत रोचक होती हैं। गोंडों में लमसेना विवाह किया जाता है, जिसमें युवक एक निश्चित समय तक अपने ससुर के खेत में मजदूरी करता है। सेवा का समय पूरा हो जाने के बाद ही युवक-युवती का विवाह किया जाता है।