देव आनंद के काले कोट को पहनने पर अदालत ने क्यों लगा दी थी रोक

हिंदी फिल्मों के सदाबहार सुपरस्टार रहे देव आनंद साहब का बॉलीवुड के सभी अभिनेताओं से हटकर अंदाज रहा है। उनके अभिनय और स्टाइल को टक्कर देने वाले अभिनेताओं की गिनती बहुत कम थी। इनके अंदाज पर लड़कियां इस तरह फ़िदा थी कि अपनी जान की परवाह किये बगैर देव आनंद को महज देखने के लिए किसी भी हद तक गुजर जाती थी और आखिर क्यों इस सुपरस्टार के काले कोट को पहनने पर अदालत को रोक लगानी पड़ी थी?

देव आनंद की ऑटोबायोग्राफी ‘रोमांसिंग विथ लाइफ’ के मुताबिक काफी मुश्किलों के बाद उन्हें ‘मिलिट्री सेंसर ऑफिस’ में क्लार्क मिल गयी। इस नौकरी में उन्हें सैनिकों की चिट्ठियों को उनके परिवार वालों को पढ़कर सुनाना होता था। इस काम के लिए उन्हें करीब १६५ रुपये की तनख्वाह मिला करती थी। करीब एक साल नौकरी करने के बाद देव साहब अपने बड़े भाई चेतन आनंद के पास चले आये जो उस समय ‘भारतीय जन नाट्य संघ’ से जुड़े हुए थे। चेतन आनंद ने उन्हें अपने साथ शामिल किया जिसके बाद देव साहब को नाटकों में छोटे-मोटे किरदार मिलने लगे।

एक बार इसी नाट्य संघ में देव साहब को ‘जुबैदा’ नामक एक नाटक में काम करने का मौका मिला, जिसका निर्देशन बलराज साहनी कर रहे थे। देव साहब को १० लाइन का एक डायलॉग दिया गया। देव आनंद ने रात भर इस डायलॉग को रटकर तैयारी की और अगले दिन इस नाटक के रिहर्सल के लिए पहुंच गए। मगर कई प्रयासों के बावजूद देव साहब ये डायलॉग नहीं बोल पा रहे थे और उन्हें बलराज साहनी ने इस नाटक से बाहर कर दिया था।


उन्हीं दिनों निर्देशक पीएल संतोषी अपनी फिल्म ‘हम एक है’ के लिए एक नए अभिनेता की तलाश में थे। देव साहब को जब इस बात का पता चला तो वो भी ऑडिशन देने के लिए पहुंच गए। स्क्रीन टेस्ट में देव आनंद को कोई भी एक डायलॉग बोलने के लिए कहा गया। फिर क्या था, एक्शन बोलते ही देव साहब ने उसी नाटक जिसकी १० लाइनें ना बोल पाने की वजह से उन्हें बाहर निकाल दिया गया था, उसी नाटक की वो १० लाइनें देव साहब ने बोल दी। इन १० लाइनों ने निर्देशक पीएल संतोषी पर अपना असर दिखाया और देव साहब को उनकी पहली फिल्म मिल गयी।

उनकी पहली फिल्म तो नहीं चली मगर इसके बाद साल १९४८ में रिलीज़ उनकी फिल्म ‘जिद्दी’ सफल रही जिसके बाद उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा और ‘नवकेतन’ बैनर की स्थापना की और एक के बाद एक कई सफल फिल्मों में काम किया और कई कामयाब फिल्मों का निर्माण भी किया। देव साहब के फ़िल्मी करियर में बाज़ी, मुनीम जी, दुश्मन, कालाबाज़ार, सी आई डी, पेइंग गेस्ट, गैम्बलर, तेरे घर के सामने, काला पानी, गाइड और हरे रामा हरे कृष्णा जैसी कई सफल फ़िल्में शामिल है।

फिल्मों में अपनी डायलॉग डिलीवरी के अलावा देव साहब अपने पहनावे और लुक्स के लिए बेहद चर्चित थे और इन्हीं पहनावों में एक था उनका सफ़ेद शर्ट पर काला कोट का पहनना। ये बात शायद सुनने में अजीब लगे मगर यह सच है कि सफ़ेद शर्ट पर काला कोर्ट देव साहब पर इतना जंचता था कि लड़कियां उन्हें देखने के लिए दीवानी हुई जाती थी। दीवानगी की हद पार कर लड़कियां अपनी जान तक दांव पर लगा देती थी। खबरों के मुताबिक देव साहब को काले कोट में देखकर लड़कियां उनकी एक झलक देखने के लिए छत से छलांग तक लगा दिया करती थी।

फिल्म ‘अफसर’ के निर्माण के दौरान देव आनंद का झुकाव फिल्म अभिनेत्री सुरैया की और हो गया था। एक गाने की शूटिंग के दौरान देव आनंद और सुरैया की नांव पानी में पलट गयी थी, जिसमें देव साहब ने सुरैया को डूबने से बचाया था। इसके बाद सुरैया और देव आनंद को एक दूसरे से प्यार करने लगे थे। लेकिन, सुरैया की दादी की इजाजत ना मिलने की वजह से यह जोड़ी टूट गयी। जिसके बाद देव आनंद ने साल १९५४ में अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से शादी कर ली।

देव साहब और कल्पना कार्तिक की शादी सफल नहीं हो सकी। दूसरे अभिनेताओं की तरह देव साहब ने अपने बेटे सुनील आनंद को फिल्मों में स्थापित करने के लिए बहुत प्रयास किये, मगर सफल नहीं हो सके। साल २००१ में देव आनंद को भारत सरकार की तरफ से ‘पद्मभूषण’ का सम्मान प्राप्त हुआ और साल २००२ में उन्हें ‘दादा साहब फाल्के’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। आखिरकार, ३ दिसंबर २०११ के दिन देव आनंद साहब ने लंदन में इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

जानकारी ‘जब देव आनद के काले कोट को पहनने पर अदालत ने लगा दी थी रोक, लड़कियां बनी थी वजह’