नई दिल्ली : दक्षिण भारत से आने वाले दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष बने हैं। शशि थरूर को एक तरफा मुकाबले में हराते हुए 7897 वोट हासिल किए। खड़गे के पार्टी अध्यक्ष बनने से कई सालों से चुनावी मैदानों में बैकफुट पर रही कांग्रेस में कुछ समय के लिए ही सही, थोड़ा नयापन जरूर आया है। पार्टी एक तीर से दो निशाने साधने की जुगत में है। खड़गे का दांव चलकर न सिर्फ कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी को नई ऊर्जा देने का प्रयास किया है, बल्कि यूपी में मायावती के वोटबैंक में भी डेंट लगाने की कोशिश की है। दरअसल, यूपी में दलित समुदाय का एक बड़ा वोटबैंक है, जो कई दशकों से पहले मायावती और फिर कुछ सालों से उसमें का कुछ हिस्सा बीजेपी की ओर जाता रहा है।
पार्टी खड़गे के जरिए यूपी में मायावती को मिलने वाले वोट्स को हासिल करने का प्रयास करेगी। हालांकि, पिछले साल पंजाब विधानसभा चुनाव से ऐन पहले चला गया कांग्रेस का दलित दांव फेल हो गया था। सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह में चल रहे विवाद के बीच कांग्रेस आलाकमान ने दलित नेता चरणजीत चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन कुछ समय बाद हुए विधानसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा। खुद चन्नी भी दोनों सीटें हार गए।
यूपी में कितने फीसदी हैं दलित वोट?
देश को आजादी मिलने के बाद कई दशकों तक उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक तरफा राज करने वाली कांग्रेस के हाथ से धीरे-धीरे सत्ता जाती रही। एक वक्त में दलित वोटबैंक में अच्छा खास हिस्सा रखने वाली कांग्रेस के पास अब काफी कम फीसदी दलित वोटर्स का साथ है। ऐसे में भले ही खड़गे को पार्टी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया हो, लेकिन यूपी में भी उसका फायदा उठाना चाहेगी। यूपी की राजनीति में दलित वोटर्स काफी अहम स्थान रखते हैं। यह प्रतिशत तकरीबन 21 फीसदी है, जोकि जाटव और गैर-जाटव में बंटा हुआ है। प्रदेश में जाटव आबादी 50-55 फीसदी है और बीएसपी सुप्रीमो मायावती भी इससे ही आती हैं। बसपा की जाटव वोटबैंक पर पकड़ काफी मजबूत रही है। 2017 यूपी विधानसभा चुनाव में लगभग 87 फीसदी जाटव ने मायावती को वोट दिया था, लेकिन यह प्रतिशत इस बार 2022 में कम होकर 65 फीसदी पर आ गया। मायावती से लगातार छिटक रहे दलित वोटर्स में सेंधमारी के पीछे बीजेपी बड़ी वजह है। अब कांग्रेस भी मायावती के इस वोटबैंक को हासिल करना जरूर चाहेगी।
राष्ट्रीय स्तर पर खड़गे तो यूपी में खाबरी… कितना होगा फायदा?
कांग्रेस में लंबे वक्त के बाद राष्ट्रीय स्तर पर गैर-गांधी कोई अध्यक्ष बना है। साथ ही खड़गे दलित समुदाय से आते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर खड़गे को अध्यक्ष बनाने से पहले पार्टी यूपी में भी बदलाव कर चुकी है। विधानसभा चुनाव में करारी हार झेलने के बाद पार्टी ने अजय कुमार लल्लू से कमान वापस ले ली थी और फिर पिछले दिनों बृजलाल खाबरी को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। मायावती के करीबियों में रहे खाबरी भी दलित समुदाय से आते हैं। हालांकि, पिछले दो चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ चुका है। लेकिन अब जब राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर, दोनों ही जगह दलित समुदाय के नेताओं के हाथ में पार्टी की कमान है तो फिर कांग्रेस जी-जान से दलित वोटर्स का मत हासिल करने की कोशिश करेगी। उधर, राजनीतिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस दांव से पार्टी को कितना फायदा होगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन कांग्रेस को जमीन पर जरूर काम करना होगा। बूथ लेवल से लेकर संगठन के स्तर तक पार्टी को नई रणनीति बनानी होगी।