नई दिल्ली : दिल्ली के उपराज्यपाल और आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के बीच में जारी घमासान बढ़ता ही जा रहा है। एलजी ने केजरीवाल सरकार को अब एक और मोर्चे पर घेरने की तैयारी शुरू कर दी है। उन्होंने मंगलवार को दिल्ली के मुख्य सचिव को निजी बिजली वितरण कंपनी बीएसईएस को ‘आप’ सरकार द्वारा दी जाने वाली बिजली सब्सिडी में कथित अनियमितताओं की जांच का आदेश दिया है।
वहीं, एलजी के इस आदेश के बाद दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सक्सेना को चिट्ठी लिखकर पर बड़ा पलटवार किया है। सिसोदिया ने कहा है कि उपराज्यपाल चुनी हुई सरकार को बाईपास कर रहे हैं। सभी जांच गैरकानूनी और असंवैधानिक हैं। आपके सभी आदेश राजनीति से प्रेरित हैं। अब तक किसी भी जांच में कुछ नहीं निकला।
सिसोदिया ने अपनी चिट्ठी में लिखा है, ”आदरणीय उपराज्यपाल महोदय, मैं रोजाना अखबारों में देख रहा हूं कि आप दिल्ली की चुनी हुई सरकार को बाईपास करके रोज हमारे कामकाज पर नई-नई जांच बिठा रहे हैं। आपकी ये जांच गैरकानूनी और असंवैधानिक हैं। मैं आपके संज्ञान में संविधान में दिए गए आपके अधिकारों को पुन: रेखांकित करना चाहता हूं। दिल्ली में जमीन, पुलिस, पब्लिक ऑर्डर और सर्विसेज के अलावा बाकी सभी मामलों में निर्णय लेने का अधिकार दिल्ली की चुनी हुई सरकार को दिया गया है। इन चारों विषयों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में काम करने, न करने, रोकने या जांच करने का अधिकार संविधान के अनुसार दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास है।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि दिल्ली के उपराज्यपाल – जमीन, पुलिस और पब्लिक ऑर्डर के विषयों को छोड़कर अन्य सभी विषयों पर चुनी हुई सरकार की सलाह पर ही काम करेंगे। चुनी हुई सरकार की सहमति के बिना आप इनमें से किसी भी विषय पर न तो कोई निर्णय ले सकते हैं और न ही रोक सकते हैं या जांच करा सकते हैं। आपको यदि किसी विषय पर जांच करानी है तो आपको संबंधित मंत्री या मुख्यमंत्री को लिखना होगा। इन चार विषयों को छोड़कर अन्य किसी भी विषय पर आप किसी भी अधिकारी को सीधे आदेश नहीं दे सकते।
देखने में आ रहा है कि रोजाना चुनी हुई सरकार के निर्णयों के विषय में मुख्य सचिव को आदेश पर आदेश दिए जा रहे हैं। आपके ये आदेश राजनीति से प्रेरित, गैर-कानूनी, असंवैधानिक और सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा आपके लिए निर्धारित कार्य क्षेत्र से पूरी तरह बाहर हैं। चुनी हुई सरकार को पूरी तरह बाहर कर आपके द्वारा इस प्रकार मनमर्जी से लिए गए इन निर्णयों का पालन संभव नहीं है। अत: मुख्य सचिव को दिए गए आदेश वापस लिए जाएं। मेरा आग्रह है कि भविष्य में आप कृपया संविधान के अनुरूप कार्य करें।
ये आदेश सिर्फ राजनीति से प्रेरित हैं- ये इसी बात से साबित होता है कि आपके द्वारा अभी तक जितने भी जांच के आदेश दिए गए, किसी में कुछ नहीं निकला। तथाकथित शराब घोटाला, स्कूल घोटाला, बस खरीद घोटाले और ना जाने क्या-क्या। इस किस्म की फर्जी जांचों से किसी का भला नहीं होता। सभी विभागों का समय बर्बाद होता है और सभी अधिकारियों का मनोबल टूटता है।”
जानकारी के अनुसार, दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने उपभोक्ताओं को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के माध्यम से बिजली सब्सिडी के भुगतान का क्रियान्वयन कथित रूप से नहीं होने की जांच करने के मुख्य सचिव को निर्देश दिए हैं। दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (डीईआरसी) ने 2018 में सब्सिडी उपभोक्ताओं के खाते में भेजने के आदेश दिए थे। उपराज्यपाल कार्यालय ने बताया कि मुख्य सचिव से सात दिन में रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है।
दरअसल, उपराज्यपाल सचिवालय को एक शिकायत मिली थी, जिसमें दिल्ली में केजरीवाल सरकार की बिजली सब्सिडी योजना में खामियों और विसंगतियों का मुद्दा उठाया गया है।
शिकायतकर्ताओं में प्रख्यात वकील और कानूनविद शामिल हैं। डीईआरसी ने 19 फरवरी 2018 को अपने आदेश में कहा था कि दिल्ली सरकार बिजली सब्सिडी को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के माध्यम से उपभोक्ताओं को अंतरित करने पर विचार कर सकती है। उन्होंने आरोप लगाया है कि दिल्ली सरकार की ओर से निदेशकों और एक निजी बिजली वितरण कंपनी (डिस्कॉम) की नियुक्ति के बाद एक बड़ा घोटाला हुआ।